Monday, 3 April 2017

सूरज ताका धीरे से

Gud morning🍁
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रात की काली चुनर उठाकर
सूरज ताका धीरे से
अलसाये तन बोझिल पलकें
नींद टूट रही धीरे से
थोड़ा सा सो जाऊँ और पर
दिन चढ़ आया धीरे से
कितनी जल्दी सुबह हो जाती
रात क्यूँ होती है धीरे से
खिड़की से झाँक गौरेया गाये
चूँ चूँ चीं चीं धीरे से
गुलाब,बेली की सुंगध से महकी
हवा चली है धीरे से
किरणों के छूते जगने लगी धरा
प्रकृति कहे ये धीरे से
नियत समय पर कर्म करो तुम,
सूरज सिखलाये धीरे से।

                          #श्वेता🍁




15 comments:

  1. कर्म को प्रेरित करती सूरज की किरण ...
    ऊर्जा देते शब्द ...

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    1. जी बहुत आभार आपका दिगंबरजी

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 05 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी आभार यशोदा जी।बिलंब हुआ मुझे माफी चाहेगे।




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  3. कर्म का सन्देश देती रचना ! सुंदर

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    1. आभार आपका ध्रुव जी

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  4. वाह. बहुत सुन्दर कविता...

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    1. आभार खूब सारा आपका सुधा जी

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  5. रोजमर्रा की स्थिति से रु-ब-रु कराती आपकी सूंदर कविता स्वेता जी।
    सादर आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों --
    मेरे ब्लॉग का लिंक है : http://rakeshkirachanay.blogspot.in/

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    1. जी आभार राकेश जी आपका मेरी रचना पढ़ने के लिए ।

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  6. सहीं कहां हमें हर काम समय पर करना चाहिए, गुजरा हुआ समय लोट कर नहीं आता।
    http://savanxxx.blogspot.in

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    1. जी आभार सावन जी बहुत सारा।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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