Gud morning🍁
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रात की काली चुनर उठाकर
सूरज ताका धीरे से
अलसाये तन बोझिल पलकें
नींद टूट रही धीरे से
थोड़ा सा सो जाऊँ और पर
दिन चढ़ आया धीरे से
कितनी जल्दी सुबह हो जाती
रात क्यूँ होती है धीरे से
खिड़की से झाँक गौरेया गाये
चूँ चूँ चीं चीं धीरे से
गुलाब,बेली की सुंगध से महकी
हवा चली है धीरे से
किरणों के छूते जगने लगी धरा
प्रकृति कहे ये धीरे से
नियत समय पर कर्म करो तुम,
सूरज सिखलाये धीरे से।
#श्वेता🍁
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रात की काली चुनर उठाकर
सूरज ताका धीरे से
अलसाये तन बोझिल पलकें
नींद टूट रही धीरे से
थोड़ा सा सो जाऊँ और पर
दिन चढ़ आया धीरे से
कितनी जल्दी सुबह हो जाती
रात क्यूँ होती है धीरे से
खिड़की से झाँक गौरेया गाये
चूँ चूँ चीं चीं धीरे से
गुलाब,बेली की सुंगध से महकी
हवा चली है धीरे से
किरणों के छूते जगने लगी धरा
प्रकृति कहे ये धीरे से
नियत समय पर कर्म करो तुम,
सूरज सिखलाये धीरे से।
#श्वेता🍁
👍👍👌👌
ReplyDelete,🙏🙏🙏
Delete👍👍👌👌
ReplyDeleteकर्म को प्रेरित करती सूरज की किरण ...
ReplyDeleteऊर्जा देते शब्द ...
जी बहुत आभार आपका दिगंबरजी
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 05 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी आभार यशोदा जी।बिलंब हुआ मुझे माफी चाहेगे।
Deleteकर्म का सन्देश देती रचना ! सुंदर
ReplyDeleteआभार आपका ध्रुव जी
Deleteवाह. बहुत सुन्दर कविता...
ReplyDeleteआभार खूब सारा आपका सुधा जी
Deleteरोजमर्रा की स्थिति से रु-ब-रु कराती आपकी सूंदर कविता स्वेता जी।
ReplyDeleteसादर आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों --
मेरे ब्लॉग का लिंक है : http://rakeshkirachanay.blogspot.in/
जी आभार राकेश जी आपका मेरी रचना पढ़ने के लिए ।
Deleteसहीं कहां हमें हर काम समय पर करना चाहिए, गुजरा हुआ समय लोट कर नहीं आता।
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
जी आभार सावन जी बहुत सारा।
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