दर्द थका रोकर अब बचा कोई एहसास नही
पहचाने चेहरे बहुत जिसकी चाहत वो पास नही
पलभर के सुकूं को उम्रभर का मुसाफिर बना
जिंदगी में कहीं खुशियों का कोई आवास नहीं
बादलों की सैर कर लौट आना है वापस फिर
टहनी पर ही रहना घर परिंदों का आकास नहीं
दो जून की रोटी भी मयस्सर मुश्किल से हो जिसे
उसके जीवन में त्योहार का कोई उल्लास नहीं
टूट जाता है आसानी से धागा दिल के नेह का
समझो वहाँ मतलब था प्यार का विश्वास नहीं
#श्वेता🍁
पहचाने चेहरे बहुत जिसकी चाहत वो पास नही
पलभर के सुकूं को उम्रभर का मुसाफिर बना
जिंदगी में कहीं खुशियों का कोई आवास नहीं
बादलों की सैर कर लौट आना है वापस फिर
टहनी पर ही रहना घर परिंदों का आकास नहीं
दो जून की रोटी भी मयस्सर मुश्किल से हो जिसे
उसके जीवन में त्योहार का कोई उल्लास नहीं
टूट जाता है आसानी से धागा दिल के नेह का
समझो वहाँ मतलब था प्यार का विश्वास नहीं
#श्वेता🍁
सुंदर रचना.... आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है
ReplyDeleteआभार संजय जी आपने मेरी रचनाएँ पढ़ी और समझी बहुत शुक्रिया आपका।
ReplyDeletewha kya baat hai nice kavita Thanks For Sharing
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