Tuesday 25 July 2017

सावन-हायकु


छेड़ने राग
बूँदों से बहकाने
आया सावन

खिली कलियाँ
खुशबु हवाओं की
बताने लगी

मेंहदी रचे
महके तन मन
मदमाये है

हरी चुड़ियाँ
खनकी कलाई में
पी मन भाए

धानी चुनरी
सरकी रे सर से
कैसे सँभालूँ

झूला लगाओ
पीपल की डार पे
सखियों आओ

लजीली आँखें
झुक झुक जाये रे
धड़के जिया

मौन अधर
मंद मुस्काये सुन
तेरी बतिया

छुपके ताके
पलकों की ओट से
तोरी अँखियाँ

संग भीग ले
रिम झिम सावन
बीत न जाए



14 comments:

  1. बहुत खूब हायकू

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।

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  2. बहुत सुन्दर मनभावन सावन-हाइकु।

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका रवींद्र जी।

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  3. वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका संजय जी:)

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 30 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय।

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  5. बहुत सुन्दर ! श्वेता जी

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    1. आपका बहुत आभार ध्रुव जी।

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  6. सुंदर सावन के सुंदर हायकू !

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका मीना जी।

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  7. बहुत ही सुन्दर वर्षा ऋतु वर्णन...

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका सुधा जी।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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