Friday, 28 July 2017

आँखें


तुम हो मेरे बता गयी आँखें
चुप रहके भी जता गयी आँखें
छू गयी किस मासूम अदा से
मोम बना पिघला गयी आँखें
रात के ख्वाब से हासिल लाली
लब पे बिखर लजा गयी आँखें
बोल चुभे जब काँटे बनके
गम़ में डूबी नहा गयी आँखें
पढ़ एहसास की सारी चिट्ठियाँ
मन ही मन बौरा गयी आँखें
कुछ न भाये तुम बिन साजन
कैसा रोग लगा गयी आँखें
     #श्वेता🍁
*चित्र साभार गूगल*

8 comments:

  1. शुभ संध्या..
    अपनी फोटो क्यों हटा दी
    लीजिए पढ़िए अपनी रचना...
    .....
    तुम हो मेरे
    बता गयी
    आँखें चुप रहके
    जता गयी आँखें
    छू गयी
    किस मासूम अदा से
    मोम बना
    पिघला गयी आँखें
    रात के ख्वाब से
    हासिल लाली
    लब पे बिखर
    लजा गयी आँखें
    बोल चुभे
    जब काँटे बनके
    गम़ में डूबी
    नहा गयी आँखें
    पढ़ एहसास की
    सारी चिट्ठियाँ
    मन ही मन
    बौरा गयी आँखें
    कुछ न भाये
    तुम बिन
    साजन कैसा
    रोग लगा गयी आँखें
    #श्वेता🍁

    ReplyDelete
    Replies
    1. हा हा हा दी वो सुंदर नहीं लग रही थी।
      बहुत बहुत आभार दी आपके ढेर स्नेह के लिए:))

      Delete
  2. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार लोकेश जी, शुक्रिया तहेदिल से:)

      Delete
  3. बेहतरीन रचना ,वाह !

    क्या कहने को आतुर
    क्या कह गईं आँखें
    सोते हुए सपनों में
    क्यूँ जगा गईं आँखें
    हम तो चले थे कुछ ख़्वाब संजोए
    सच का आईना
    दिखा गईं आँखें

    बहुत सूंदर रचना ,आभार
    "एकलव्य"


    ReplyDelete
    Replies
    1. अरे वाह्ह्ह ध्रुव जी क्या खूब लिखा आपने,
      बहुत सुंदर 👌👌👌
      आपकी त्वरित प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी:))
      बहुत बहुत आभार आपका हृदय तल से।

      Delete
  4. बहुत ही बढ़िया रचना, स्वेता।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार ज्योति जी।

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...