पल पल जी तड़पा के आँसू बनकर न आया करो
चाहकर भी जाने क्यों
खिलखिला नहीं पाती हूँ
बेचैनियों को परे हटा
तुम बिन धड़कनों का
सिलसिला नहीं पाती हूँ
भारी गीली पलकों का
बोझ उठा नहीं पाती हूँ
फूल,भँवर,तितली,चाँद में तुम दिखते हो चौबारों में
पानी में लिखूँ नाम तेरा,तेरी तस्वीर बनाऊँ दीवारों में
दिन दिन भर बेकल बेबस
गुमसुम बैठी सोचूँ तुमको
तुम बन बैठे हो प्राण मेरे
हिय से कैसे नोचूँ तुझको
गम़ बन बह जा आँखों से
होठों से पी पोछूँ तुझको
सूनी सुनी सी राहों में पल पल तेरा रस्ता देखूँ
दुआ में तेरी खुशी माँगू तुझको मैं हँसता देखूँ
चाहकर ये उदासी कम न हो
क्यूँ प्रीत इतना निर्मोही है
इक तुम ही दिल को भाते हो
तुम सा क्यूँ न कोई है
दिन गिनगिन कर आँखें भी
कई रातों से न सोई है
तुम हो न हो तेरा प्यार इस दिल का हिस्सा है
अब तो जीवन का हर पन्ना बस तेरा ही किस्सा है
#श्वेता🍁
बहुत ख़ूबसूरत और भावमय गीत...
ReplyDeleteअति आभार आपका सर,तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteया अनुरागी चित की गति समुझै न .....उज्जल होय!
ReplyDeleteअनुराग के उछाह की आकुल अभिव्यक्ति ! बहुत सुंदर!!
सुंदर प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से अत्यंत आभार आपका
Deleteविश्वमोहन जी।
बहुत ही भावुक रचना
ReplyDeleteदिल की गहराइयों से निकले शब्द
जी, बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteजानूँ तुम सा क्यूँ न कोई है
ReplyDeleteदिन गिनगिन कर आँखें भी
रोती कई रातों से न सोई है-------------
क्या बात है !!!!!!!!!!!! प्रेम भरे आकुल मन का विरह गान --------- श्वेता जी लाजवाब भावों से भरी है आपकी सुंदर रचना ------- सस्नेह शुभकामना आपको ------
अत्यंत आभार हृदय से आपका रेणु जी।आपके स्नेहयुक्त शब्द और अच्छा लिखने.को प्रेरित करते है।आपकी शुभकामनाओं के लिए तहेदिल से बहुत शुक्रिया।
Deleteबहुत खूबसूरत पंक्तियाँ। कमाल का वर्णन वाह !शुभकामनाओं सहित ,आभार ''एकलव्य"
ReplyDeleteअत्यंत आभार तहेदिल से आपका आदरणीय ध्रुव जी।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteप्रेम की पराकाष्ठा....
बहुत ही सुन्दर ...दिल को छूती रचना...
अत्यंत आभार तहेदिल से आपका सुधा जी।
Deleteनेह बनाये रखिए।
विरह प्रणय का संगम
ReplyDeleteनयन हुए फिर से नम
फिर वही बिछोह का दुःख झेला है !!!
जिसने महसूस किया है वही समझ सकता है, सुंदर भावुक रचना।
अत्यंत आभार तहेदिल से मीना जी,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया मन छूती है हमेशा। अपना नेह बनाये रखिए।
Deleteक्या कहें, क्या लिखें। भाबों का अतिरेक मन और प्राण दोनों को समेट नवजीबन प्रदान कर रहा हो जैसे। गजब है आपका लेखन।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका, आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए।
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव संयोजन .कमाल करती हैं आप भावनाओं को उकेरने में .
बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से मीना जी।उत्साहवर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर मन गदगद हुआ।
DeleteBhut khoob
ReplyDeleteआपका अति आभार रितु जी।
Deleteबहुत.बहुत आभार आपका आदरणीय सर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द भाव संयोजन
ReplyDeleteजी, आभार आपका तहे दिल से ,ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
Deleteपहली ही पंक्ति पढ़कर मुझे अपना एक पुराना शेर याद आ गया ! शेर कुछ यूँ है ---
ReplyDeleteतुम जा रहे हो!ठीक है!मेरी यादाश्त भी लेते जाओ
तेरी यादों के पुलिंदे मुझे हँसने नहीं देंगे ।
प्रेम और विरह की वेदना को प्रस्तुत करती बेहतरीन रचना । बहुत खूब आदरणीया ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय सर,आपने इतना खूबसूरत शेर लिखा मेरी रचना का मान बढ़ा।
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आपका।
वाह !
ReplyDeleteविरह वेदना का व्यापक विवेचन। बधाई।
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका रवींद्र जी।
Deleteप्रेम और विरह का भाव समेटे शानदार रचना है ... दिल को छूती हुयी ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका नासवा जी आपकी सराहना उपहार जैसा है।तहे दिल से शुक्रिया।
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