Tuesday 24 October 2017

शब्द हो गये मौन

शब्द हो गये मौन सारे
भाव नयन से लगे टपकने,
अस्थिर चित बेजान देह में
मन पंछी बन लगा भटकने।

साँझ क्षितिज पर रोती किरणें
रेत पे बिखरी मीन पियासी,
कुछ भी सुने न हृदय है बेकल
धुंधली राह न टोह जरा सी।

रूठा चंदा बात करे न
स्याह नभ ने झटके सब तारे,
लुकछिप जुगनू बैठे झुरमुट
बिखरे स्वप्न के मोती खारे।

कौन से जाने शब्द गढ़ूँ मैं
तू मुस्काये पुष्प झरे फिर,
किन नयनों से तुझे निहारूँ
नेह के प्याले मधु भरे फिर।

तुम बिन जीवन मरूस्थल
अमित प्रीत तुम घट अमृत,
एक बूँद चख कर बौराऊँ
तुम यथार्थ बस जग ये भ्रमित।

    #श्वेता🍁

24 comments:

  1. लाजवाब....
    बहुत ही सुन्दर, अविस्मरणीय प्रस्तुति ।
    किन नयनो से तुझे निहारूँ
    नेह के प्याले मधु भरे फिर...
    वाह!!!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,आपसे इतनी सुंदर प्रतिक्रिया पाना बहुत सुखद है।कृपया नेह बनाये रखे।

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  2. अति आभार आपका दी।मेरी रचना को मान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया।

    सादर।

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  3. सुंदर! सही में " शब्द हो गए मौन " !

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    1. बहुत बहुत आभार आपका विश्वमोहन जी।

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  4. वाह !
    बेकल व्यथित मन की कश्मकश और प्रिय का स्मरण करती विछोह में डूबी नायिका के नज़ाकत भरे मनोभावों को ख़ूब परवाज़ दिए हैं। हृदयस्पर्शी रचना। बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका रवींद्र जी।तहेदिल से बहुत शुक्रिया।

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  5. मन के कोमल भाव और सुंदर शब्द शिल्प !!!!!!!!!!! समर्पण का चरम छूती अप्रितम रचना प्रिय श्वेता जी | और अंतिम चार पंक्तियाँ के तो क्या कहने --------------


    तुम बिन जीवन मरूस्थल
    अमित प्रीत तुम घट अमृत,
    एक बूँद चख कर बौराऊँ
    तुम यथार्थ बस जग ये भ्रमित।
    बहुत सुंदर !!!!!!!!! सचमुच जब इन्सान प्रेम में आकंठ डूबा हो तो दुनिया भ्रमित और प्रियतम ही एकमात्र यथार्थ नजर आता है | सस्नेह शुभकामना आपको |










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    1. बहुत बहुत बहुत आभार आपका प्रिय रेणु जी।आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया मन को आहृलादित कर जाती है।तहेदिल से शुक्रिया।

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  6. प्रेम की अनेक अभिव्यक्तियों में से एक मौन अभिव्यक्ति भी है । वाणी के मौन होते ही नयन बोलने लगे, मन भटककर जाने कहाँ से कहाँ पहुँच गया....
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ! वियोग वेदना को मुखर करती हुई...बधाई श्वेताजी ।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी।तहेदिल से शुक्रिया जी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सर।

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  8. bahot badhiya ....antar man ki pida ko kya khoob darshaya hai

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    1. बहुत बहुत आभार नीतू जी। तहेदिल से शुक्रिया।

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    1. जी बहुत आभार आपका ध्रुव जी।

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  10. बहुत खूबसूरत भाव संयोजन .

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।तहेदिल से शुक्रिया।

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  11. तुम बिन जीवन मरुस्थल
    अमित प्रीत तुम घट अमृत....अति सुंदर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शकुंतला जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  12. मन के भावों को व्यक्त करती उम्दा रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।

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  13. इतनी पीड़ा? इतना क्रंदन?
    उसके बिन अब जीना सीख, प्रीत न मिलती, मांगे भीख !

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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