तारे जग के नन्हे-नन्हें
झिलमिल स्वप्न हमारे
चाहते है हम छूना नभ को
सतरंग में रंगना बादल को
सूरज को भरकर आँखों में
हम हरना चाहते है तम को
भट्टी के तापों से झुलसे
कालिख लिपटे हाथों में
शीतलता भर चाँदनी की
हम सोना चाहते फूलों पर
कोमल मन के अंकुर हम
जरा प्रेम की बारिश कर दो
जलते जीवन की मरुभूमि में
अपनेपन की छाया भर दो
कंटक राह के कम नहीं होगे
जीवनपथ पर जीवन पर्यंत
मिल जाये गर साथ नेह के
खिलखिलायेे हम दिग्दिगंत
बहुत सुन्दर ,,,
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका कविता जी।तहेदिल से शुक्रिया जी।
Deleteबहुत खूब...., . नन्हें नन्हें मासूम बच्चों की कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति को सुन्दरता से साकार किया है आपने .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।
Deleteबहुत सुंदर कविता, कितनी मासूमियत भरे भाव और जीवन की सच्चाइयां. बधाई
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार आपका अपर्णा जी,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteकोमल मन के अंकुर हम
ReplyDeleteजरा प्रेम की बारिश कर दो
जलते जीवन की मरुभूमि में
अपनेपन की छाया भर दो
बहुत सुन्दर.....
गरीब बच्चों को थोड़ा सहारा मिले तो उनके भी सपने साकार हों....
वाह!!!
जी बहुत बहुत आभार आपका मीना जी,रचना का सही मंतव्य समझा आपने।
Deleteहृदयतल से शुक्रिया आपका।
बच्चों के कोमल मन की भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती व्यक्त किया हैं आपने।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी। तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteभट्टी के तापों से झुलसे
ReplyDeleteकालिख लिपटे हाथों में
शीतलता भर चाँदनी की
हम सोना चाहते फूलों पर
बेहतरीन...
सादर
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया दी आपका:)
Deleteआपका आशीष मिला। तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।
कविता के सार और सौन्दर्य की प्रशंसा शब्दों से परे!
ReplyDeleteअति आभार आपका विश्वमोहन जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।
Deleteवाह
ReplyDeleteअति आभार आपका सर।
Deleteकंटक राह के कम नहीं होगे
ReplyDeleteजीवनपथ पर जीवन पर्यंत
मिल जाये गर साथ नेह के
खिलखिलायेे हम दिग्दिगंत।
बहुत सुंदर वाह।
बहुत बहुत आभार आपका अमित जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।
DeleteWaah bahut hi umda
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सदा जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteकंटक राह के कम नहीं होगे, जीवनपथ पर जीवन पर्यंत
ReplyDeleteमिल जाये गर साथ नेह के, खिलखिलायेे हम दिग्दिगंत..
स्नेह की बगिया में फूल खिलाती मोहक रचना.... मोह गर बचपने से हो तो जग बैरी न हो....
बहुत बहुत बधाई श्वेता जी
जी,आदरणीय p.k ji.
Deleteआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया का हृदय से आभार,तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा आपका।
मोहक रचना...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका संजय जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।
Deleteमासूम बचपन को समर्पित आपकी यह रचना अत्यंत सराहनीय और प्रभावोत्पादक है। मासूम बच्चों के प्रति संवेदना को उभारती है। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
ReplyDeleteअति आभार आपका रवींद्र जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।
Deleteबहुत सुंदर कविता, बच्चों के कोमल मन को रास्ता दिखाती अद्भुत रचना.
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार आपका अपर्णा जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteअति आभार आपका आदरणीय। तहेदिल से शुक्रिया आपका।
ReplyDeleteSo Nice Sweta Ji. Please keep it up. You are really a Very Good Writter. My Best Wishers are always with You.
ReplyDeleteThanku so much Vijeta ji,thanks for ur warm wishes.
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