Monday, 6 November 2017

तारे जग के


तारे जग के नन्हे-नन्हें
झिलमिल स्वप्न हमारे

चाहते है हम छूना नभ को
सतरंग में रंगना बादल को
सूरज को भरकर आँखों में
हम हरना चाहते है तम को

भट्टी के तापों से झुलसे
कालिख लिपटे हाथों में
शीतलता भर चाँदनी की
हम सोना चाहते फूलों पर

कोमल मन के अंकुर हम
जरा प्रेम की बारिश कर दो
जलते जीवन की मरुभूमि में
अपनेपन की छाया भर दो

कंटक राह के कम नहीं होगे
जीवनपथ पर जीवन पर्यंत
मिल जाये गर साथ नेह के
खिलखिलायेे हम दिग्दिगंत

33 comments:

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कविता जी।तहेदिल से शुक्रिया जी।

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  2. बहुत खूब...., . नन्हें नन्हें मासूम बच्चों‎ की कोमल भावना‎ओं की अभिव्यक्ति‎ को सुन्दर‎ता से साकार किया‎ है आपने .

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।

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  3. बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।

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  4. बहुत सुंदर कविता, कितनी मासूमियत भरे भाव और जीवन की सच्चाइयां. बधाई
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अपर्णा जी,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

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  5. कोमल मन के अंकुर हम
    जरा प्रेम की बारिश कर दो
    जलते जीवन की मरुभूमि में
    अपनेपन की छाया भर दो
    बहुत सुन्दर.....
    गरीब बच्चों को थोड़ा सहारा मिले तो उनके भी सपने साकार हों....
    वाह!!!

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका मीना जी,रचना का सही मंतव्य समझा आपने।
      हृदयतल से शुक्रिया आपका।

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  6. बच्चों के कोमल मन की भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती व्यक्त किया हैं आपने।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी। तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  7. भट्टी के तापों से झुलसे
    कालिख लिपटे हाथों में
    शीतलता भर चाँदनी की
    हम सोना चाहते फूलों पर
    बेहतरीन...
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया दी आपका:)
      आपका आशीष मिला। तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।

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  8. कविता के सार और सौन्दर्य की प्रशंसा शब्दों से परे!

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    1. अति आभार आपका विश्वमोहन जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।

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  9. कंटक राह के कम नहीं होगे
    जीवनपथ पर जीवन पर्यंत
    मिल जाये गर साथ नेह के
    खिलखिलायेे हम दिग्दिगंत।

    बहुत सुंदर वाह।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अमित जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।

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  10. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सदा जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।

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  11. कंटक राह के कम नहीं होगे, जीवनपथ पर जीवन पर्यंत
    मिल जाये गर साथ नेह के, खिलखिलायेे हम दिग्दिगंत..

    स्नेह की बगिया में फूल खिलाती मोहक रचना.... मोह गर बचपने से हो तो जग बैरी न हो....
    बहुत बहुत बधाई श्वेता जी

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    1. जी,आदरणीय p.k ji.
      आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया का हृदय से आभार,तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा आपका।

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  12. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका संजय जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।

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  13. मासूम बचपन को समर्पित आपकी यह रचना अत्यंत सराहनीय और प्रभावोत्पादक है। मासूम बच्चों के प्रति संवेदना को उभारती है। बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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    1. अति आभार आपका रवींद्र जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।

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  14. बहुत सुंदर कविता, बच्चों के कोमल मन को रास्ता दिखाती अद्भुत रचना.
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अपर्णा जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  15. अति आभार आपका आदरणीय। तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  16. So Nice Sweta Ji. Please keep it up. You are really a Very Good Writter. My Best Wishers are always with You.

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    1. Thanku so much Vijeta ji,thanks for ur warm wishes.

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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