Sunday, 12 November 2017

कविताएँ रची जाती.....

मन के विस्तृत
आसमान पर
भावों के पंछी
शोर मचाते है,
उड़-उड़ कर
जब मन के सारे
मनकों को फैलाते हैं,
शब्दों के बिखरे
मोती चुन-चुनकर
कोरे-सादे पन्नों पर,
तब भाव उकेरे जाते हैं।
रोते-हँसते,गाते-मोहते,
मन जिन गलियों से 
गलियों से गुजरता है
उन गली के खुले मुंडेरों पर
सूरज-चंदा को टाँक-टाँक
नग जड़ित तारों की
झिलमिल चुनरी में
जुगनू के नाज़ुक पंखों पर 
जलते बुझते तब,
दिवा-रात के स्वप्नों को
कविताओं के शब्द बनाते हैं,
बचपन,यौवन की धूप-छाँव
प्रौढ़,बुढ़ापे से भरा गाँव,
बहते जीवन लहरों की नाव
देख के तन के चीथड़ों को,
जब पलकें पनियाती है
चलते ढलते लम्हों को,
शब्दों की स्याही में डुबाकर,
तब कविताएँ रची जाती है।

     #श्वेता🍁

32 comments:

  1. चलते ढलते हर लम्हों को,
    शब्दों की स्याही में डुबाकर,
    तब कविताएँ रची जाती है।..... बहुत खूब!!!! आभार और बधाई!!!

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    1. अति आभार आपका विश्वमोहन जी।आपकी सराहना पाना परम आनंद देता है। तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  2. वाह !!!!!! कविता रचने की भावात्मक पृष्ठभूमि और कलात्मकता की अनिवार्यताओं को आपने बख़ूबी उकेरा है। बार-बार पठनीय रचना आपकी आदरणीया श्वेता जी। ढेरों बधाइयां और शुभकामनाऐं।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय रवींद्र जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा। आप सदैव रचनाकारों को अपनी सुंदर प्रतिक्रिया के द्वारा प्रेरित करते है।

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  3. Replies
    1. हृदय तल से आभार आपका बहुत सारा p.k ji.

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  4. क्या बात है
    बहुत बेहतरीन

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

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  5. रचना प्रक्रिया का बारीकी से अवलोकन ! बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया । बहुत खूब ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सर,आपका आशीष मिला,बहुत अच्छा लगा।

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  6. वाह!!!
    लाजवाब अभिव्यक्ति....

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी। तहेदिल से शुक्रिया जी।

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  7. वाह.. क्या कहने. बहुत सुन्दर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका ,मेरे ब्लॉग पर आपका अभिनंदन है।

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    1. बहुत बहुत आभार सर।

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  9. बहुत सुंदर रचना
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अपर्णा जी।

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  10. बचपन,यौवन की धूप-छाँव
    प्रौढ़,बुढ़ापे से भरा गाँव,
    बहते जीवन लहरों की नाव
    देख के तन के चीथड़ों को,
    जब पलकें पनियाती है
    चलते ढलते लम्हों को,
    शब्दों की स्याही में डुबाकर,
    तब कविताएँ रची जाती है।

    वाह कितनी अप्रतिम व्याख्या है। कितनी अपरिमित परिधि है कविताओं की। बहुत सुंदर रचना।

    गम ख़ुशी संवेदना की स्याही जब तक कलम को तर नहीं करती तब तक कवितायें पन्नों पर उकेरी ही नहीं जा सकतीं।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अमित जी,आपकी इतनी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए,तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  11. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/11/43.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा आदरणीय राकेश जी।

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  12. देख के तन के चीथड़ों को,
    जब पलकें पनियाती है
    चलते ढलते लम्हों को,
    शब्दों की स्याही में डुबाकर,
    तब कविताएँ रची जाती है।

    वाह...बहुत सुंदर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।

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  13. मॉन के विस्मृत आसमान पर भावों के पंछी शोर मचाते हैं श्वेता जी आपकी रचना का एक-एक शब्द सुन्दर भावों से संजोया हुआ है ,सुन्दर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया ऋतु जी।

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  14. बहुत सुन्दर‎ रचना‎ .

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  15. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा आपका।

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  16. एक कवि के पूरे भाव को उकेर दी है आपने।

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    1. जी बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका प्रकाश जी।

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  17. बहुत सुंंदर और सार्थक कविता..

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    1. बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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