सुरमई अंजन लगा निकली निशा।
चाँदी की पाजेब से छनकी दिशा।।
सेज तारों की सजाकर
चाँद बैठा पाश में,
सोमघट ताके नयन भी
निसृत सुधा की आस में,
अधरपट कलियों ने खोले,
मौन किरणें चू गयी मिट गयी तृषा।
छूके टोहती चाँदनी तन
निष्प्राण से निःश्वास है,
सुधियों के अवगुंठन में
बस मौन का अधिवास है,
प्रीत की बंसी को तरसे,
अनुगूंजित हिय की घाटी खोयी दिशा।
रहा भींगता अंतर्मन
चाँदनी गीली लगी,
टिमटिमाती दीप की लौ
रोई सी पीली लगी,
रात चुप, चुप है हवा
स्वप्न ने ओढ़ी चुनर जग गयी निशा।
#श्वेता🍁
रात चुप, चुप है हवा
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन श्वेता जी
चमके चाँद अनुरक्त अम्बर में
ReplyDeleteचूनर चांदनी ललचाई.
संग कातिक के कित कित करते
अंगना पुन्नो रानी आयी.
वाह !!!
ReplyDeleteप्रकृति में बिखरे पड़े बिषयों को चुनकर शब्द चमत्कार से भावात्मकता के मख़मली रंग भरना आपके काव्य की मौलिकता का प्रमाण है। अंतर्मन को रंजित करती प्रकृति से जोड़ती बेहतरीन रचना। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
प्रिय श्वेता जी --मन के कोमल भावों को शब्द देने में आपका कोई सानी नहीं | यही कहूंगी --लाजवाब !!!!!!!!!!
ReplyDeleteजब भी आपकी कोई रचना पढ़ती हूँ हर बार आपकी सृजन कला के आगे मन्त्रमुग्ध हो जाती हूँ .
ReplyDeleteआदरणीया /आदरणीय, अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है आपको यह अवगत कराते हुए कि सोमवार ०६ नवंबर २०१७ को हम बालकवियों की रचनायें "पांच लिंकों का आनन्द" में लिंक कर रहें हैं। जिन्हें आपके स्नेह,प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन की विशेष आवश्यकता है। अतः आप सभी गणमान्य पाठक व रचनाकारों का हृदय से स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया इन उभरते हुए बालकवियों के लिए बहुमूल्य होगी। .............. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
ReplyDeleteदिल को छूती बहुत सुंदर प्रस्तुति, स्वेता!
ReplyDeleteसुरमई अंजन लगा निकली निशा,
ReplyDeleteवाह!!!!!
लाजवाब, अद्भुत, अविस्मरणीय, रचना
बढ़िया अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteअलग ही स्तर पर लेखनी आपकी स्वेता जी 🙏🌷😊
ReplyDeleteसोमघट ताके नयन भी
ReplyDeleteनिसृत सुधा की आस में,
अधरपट कलियों ने खोले,
मौन किरणें चू गयी मिट गयी तृषा।
कविता का ऐसा कोई हिस्सा नहीं जिस पर ढेरों तब्सिरे ना किये जा सकें। कल्पना शक्ति का हिमालय छू लेतीं हैं आप। शायद आप जैसे रचनाकारों के लिये वह उक्ति 'जहाँ ना पहुंचे रवि-वहाँ पहुंचे कवि' कही गई होगी।
नये प्रतिमान गढ़ती बेहद रचनात्मक दृष्टि। wahhhhh
रात चुप, चुप है हवा
ReplyDeleteस्वप्न ने ओढ़ी चुनर जग गयी निशा ...
बहुत ही सुन्दर निशा का चित्रण किया है रचना में ... रचना सृजन कविता को नयी ऊंचाइयां दे रहा है ...
बहुत सुन्दर भावों से पिरोया है रचना को आपने
ReplyDeleteश्वेता जी बेहतरीन
सुंदर !!!
ReplyDelete"सुरमयी अंजन लगा निकली निशा "
ReplyDelete"स्वप्न ने ओढ़ी चुनर जग गयी निशा "
बहुत सुंदर भावों से पिरोया है श्वेता जी आपने रचना को
बहुत खूब ।
सुरमई अंजन लगा निकली निशा।
ReplyDeleteचाँदी की पाजेब से छनकी दिशा
बहुत खूब
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 11 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteरहा भींगता अंतर्मन
ReplyDeleteचाँदनी गीली लगी,
टिमटिमाती दीप की लौ
रोई सी पीली लगी,
रात चुप, चुप है हवा
स्वप्न ने ओढ़ी चुनर जग गयी निशा।
अद्भुत! चित्रात्मकता की अद्भुत शैली !वाह श्वेता ! प्यार और शुभकामनाएं|