दूब के कोरों पर,
जमी बूँदें शबनमी।
सुनहरी धूप ने,
चख ली सारी नमी।
कतरा-कतरा
पीकर मद भरी बूँदें,
संग किरणों के,
मचाये पुरवा सनसनी।
सर्द हवाओं की
छुअन से पत्ते मुस्काये,
चिड़ियों की हँसी से,
कलियाँ हैं खिलीं,
गुलों के रुख़सारों पर
इंद्रधनुष उतरा,
महक से बौरायी,
हुईं तितलियाँ मनचली।
अंजुरीभर धूप तोड़कर
बोतलों में बंद कर लूँ,
सुखानी है सीले-सीले,
मन की सारी नमी।
#श्वेता🍁
शबनमी सा एहसास कराती रचना
ReplyDeleteबहुत खूब
बहुत बहुत आभार लोकेश जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए,तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteप्रकृति की अनुपम छटा उकेरती आपकी रचना...
ReplyDeleteवाह!!!
लाजवाब...
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया जी आप सदैव सराहती है उत्साह बढ़ाती है मेरा नेह बनाये रखे।
Deleteवाह ! क्या बात है ! लाजवाब प्रस्तुति ! प्राकृतिक सौंदर्य बोध गजब का है आप का ! प्रकृति की सुकुमार कवियत्री को मेरा नमन ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सर आपने बहुत मान दिया इतने सुंदर शब्द कहकर मन अभिभूत है आपके आशीर्वचनों से।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा आपका अपना आशीष बनाये रखे सर।
Deleteभावों को सुंदर शब्दों में पिरोया है, बहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका श्याम जी तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत ख़ूब !
ReplyDeleteशीत ऋतु का मनोहारी चित्र उकेर दिया है श्वेता जी आपने।
आपकी क़लमकारी के नए रंग प्रकृति की मोहक छटा बिखेर रहे हैं।
इतना सूक्ष्म अवलोकन प्राकृतिक घटनाओं का कि वाचक को लगता है पढ़कर जैसे लिखा हुआ सब सामने चित्र बनकर उभर आया हो।
आपकी कल्पनाशक्ति और लेखनी को माँ सरस्वती का आशीर्वाद सतत मिलता रहे।
बधाई एवं शुभकामनाऐं।
आदरणीय रवींद्र जी,
Deleteआपकी सराहना और मनोबल बढ़ाते शब्द सदैव संजीवनी जैसे होते है रचनाकारों के लिए।आपकी सुंदर शुभकामनाएँ मन को सदा आहृलादित करती है।कृपया अपना आशीष बनाये रखें।
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका तहेदिल से खूब सारा।
बहुत खूबसूरत रचना श्वेता जी .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी,तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा आपका।
Deletevery nice ! sweta ji congrats
ReplyDeleteThanku so much Dhruv ji.lots of thankx
Deleteवाह कोई जवाब नहीं सीधे दिल पर दस्तक दी है
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका संजय जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 05 नवम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका दी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteवाह बहुत ही सुंदर शब्द रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा सदा जी।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका सर,तहेदिल से शुक्रिया।
ReplyDeleteअंजुरीभर धूप तोड़कर
ReplyDeleteबोतलों में बंद कर लूँ..
ऐसी तिलिस्मी कल्पनायें, ऐसे तब्सिरे गुलज़ार साहब के बाद सिर्फ आप को लिखते देखा है। बखूबी देखा है। बहुत बहुत कमाल रचना। wahhh
सुन्दर !
ReplyDeleteशबनम की नमी और मन की नमी .... दोनों को अगर कोई सोख ले तो दिल आनंदित हो जाता है ...
ReplyDeleteविस्तृत विचार प्रवाह ...
बहुत सुंदर ढ़ेरों शुभकामनाएँ
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