Monday, 11 December 2017

क्या हुआ पता नहीं


क्यों ख़्यालों से कभी
ख़्याल तुम्हारा जुदा नहीं,
बिन छुये एहसास जगाते हो
मौजूदगी तेरी लम्हों में,
पाक बंदगी में दिल की
तुम ही हो ख़ुदा नहीं।

ज़िस्म के दायरे में सिमटी
ख़्वाहिश तड़पकर रूलाती है,
तेरी ख़ुशियों के सज़दे में
काँटों को चूमकर भी लब
सदा ही मुसकुराते हैं
तन्हाई में फैले हो तुम ही तुम
क्यों तुम्हारी आती सदा नहीं।

बचपना दिल का छूटता नहीं
तेरी बे-रुख़ी की बातों पर भी
दिल तुझसे रूठता नहीं
क़तरा-क़तरा घुलकर इश्क़
सुरुर बना छा गया
हरेक शय में तस्वीर तेरी
उफ़!,ये क्या हुआ पता नहीं....!

#श्वेता🍁

17 comments:

  1. बचपना दिल का छूटता नहीं
    तेरी बेरुखी की बातों पर भी
    दिल तुमसे रूठता नहीं
    कतरा-कतरा घुलकर इश्क
    सुरुर बना छा गया
    हरेक शय में तस्वीर तेरी
    ऊफ,ये क्या हुआ पता नहीं।

    बहुत सुंदर...
    दिल को छू जाने वाली अभिव्यक्ति

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    1. बहुत बहुत अभार तहेदिल से शुक्रिया आपका लोकेश जी।

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  2. शब्द शब्द प्रेम बद्ध. अति सुंदर रचना श्वेता जी

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    1. बहुत बहुत आभार सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत सारा।

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  3. सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।

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  4. प्रेम की निर्मल,स्वच्छ अभिव्यक्ति... सुंदर !!!!

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    1. बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका मीना जी। सस्नेह अभिनंदन।

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  5. वाह ! कितना सुंदर भाव प्रवाह ! शब्दों का चयन और सजावट बेहद खूबसूरत ! लाजवाब प्रस्तुति !! बहुत खूब आदरणीया ।

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  6. बहुत सुंंदर भाव प्रवीण प्यारी रचना..

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  7. खूबसूरत रचना...कितनी कोमल भावनाएं लिए प्रेयसी मन के उद्गारों को प्रेमी के समक्ष रख रही है..हर एक बात मानो उसकी कह रही हो प्रिय प्रिय और सिर्फ प्रिय... आपकी लेखनशैली इस विषय में अद्भुत प्रभाव छोड़ती है।लिखते रहे सदैव शुभ कामनाएं।

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  8. शुभ प्रभात....
    प्यारी सी कविता
    अलग भाव
    ख्याल भी अलग
    सादर

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  9. बचपना दिल का छूटता नहीं
    तेरी बेरुखी की बातों पर भी
    दिल तुमसे रूठता नहीं
    कतरा-कतरा घुलकर इश्क
    सुरुर बना छा गया
    हरेक शय में तस्वीर तेरी
    ऊफ,ये क्या हुआ पता नहीं।

    वाह वाह वाह।।।।।। उफ़्फ़ ये क्या हुआ पता नहीं। कितना पाकीजा ख़्याल है। शिकायत है भी और नहीं भी। बस दिल बेसाख़्ता मोहब्बत किये जा रहा है। अपेक्षा और उपेक्षा से परे।

    गोया-

    कितनी मासूम होती है
    ये दिल की धड़कनें
    कोई सुने ना सुने...
    ये खामोश नही रहतीं...!

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  10. श्रृंगार से परिपूर्ण मनोहारी रचना‎ .

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  11. अति सुंदर रचना श्वेता जी

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  12. बहुत ही लाजवाब रचना.....
    जिस्म के दायरे में सिमटी
    ख्वाहिश तड़पकर रुलाती है......
    वाह!!!!
    अद्भुत भाव....

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  13. समर्पण की गरिमा से भरी रचना अपने आप में भावनाओं का वृहद् संसार समेटे हुए है --ये पंक्तियाँ खास हैं --

    बचपना दिल का छूटता नहीं
    तेरी बे-रुख़ी की बातों पर भी
    दिल तुझसे रूठता नहीं
    क़तरा-क़तरा घुलकर इश्क़
    सुरुर बना छा गया
    हरेक शय में तस्वीर तेरी
    उफ़!,ये क्या हुआ पता नहीं--
    बहुत खूब प्रिय श्वेता जी ---सस्नेह --

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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