Saturday, 16 December 2017

विधवा


नियति के क्रूर हाथों ने
ला पटका खुशियों से दूर,
बहे नयन से अश्रु अविरल
पलकें भींगने को मजबूर।

भरी कलाई,सिंदूर की रेखा
है चौखट पर बिखरी टूट के
काहे साजन मौन हो गये
चले गये किस लोक रूठ के
किससे बोलूँ हाल हृदय के
आँख मूँद ली चैन लूट के

छलकी है सपनीली अँखियाँ
रोये घर का कोना-कोना
हाथ पकड़कर लाये थे तुम
साथ छूटा हरपल का रोना
जनम बंध रह गया अधूरा
रब ही जाने रब का टोना

जीवन के कंटक राहों में
तुम बिन कैसे चल पाऊँगी?
तम भरे मन के झंझावात में
दीपक मैं कहाँ जलाऊँगी?
सुनो, न तुम वापस आ जाओ
तुम बिन न जी पाऊँगी

रक्तिम हुई क्षितिज सिंदूरी
आज साँझ ने माँग सजाई
तन-मन श्वेत वसन में लिपटे 
रंग देख कर आए रूलाई
रून-झुन,लक-दक फिरती 'वो',
ब्याहता अब 'विधवा' कहलाई

    #श्वेता🍁

27 comments:

  1. आदरणीय सर जी,
    बहुत बहुत आभार आपका,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

    ReplyDelete
  2. प्रिय सखी श्वेता
    बहुत ही भावपूर्ण रचना
    एक विधवा के मन का क्रंदन
    रचना के रूप में बहुत ही सुंदर
    और आँखों को नम करदेने वाली है
    बहुत बहुत बधाई इस मार्मिक रचना के लिये

    ReplyDelete
  3. अद्भुत!!! बस! और कुछ नहीं!!

    ReplyDelete
  4. निशब्द, निस्तब्ध!!!
    "पुँछ गया सिन्दूर तार तार हुई चूनरी" ... नीरज जी की अप्रतिम काव्य की अप्रतिम पंक्ति याद दिला गई आपकी मर्मांतक रचना।

    अब जीवन हुवा रंग हीन रस हीन
    क्या करूँ श्रृंगार
    श्वासों का अब क्या करूं
    हृदय है स्पंदन हीन।

    वैधव्य पर एक चित्र लिखित सा काव्य अंदर तक दहला गया किसी का जीवन साथी जब चला जाता है तो ऐसा होता है जैसे प्राण विहीन शरीर संसार भ्रमण मे रह गया।
    अप्रतिम अविस्मरणीय।
    ढेर सा स्नेह।

    ReplyDelete
  5. एक विधवा की मनोस्थिति ..
    बहुत मार्मिक रचना सुंंदर
    बधाई

    ReplyDelete
  6. दर्द भरी दास्तान कहती भावुक रचना.

    ReplyDelete
  7. बहुत ही भावुक रचना
    बेहतरीन

    ReplyDelete
  8. बहुत भावुक रचना श्वेता जी ।

    ReplyDelete
  9. me bhi bloger start kiya hai lekin trafic ke liye kya karna hoga

    ReplyDelete
  10. अश्को की नमी लिये रचना ...वाह वाह रचना
    पढ़े रुलाई फूट पड़े शब्दो का ऐसा है विवरण .

    ReplyDelete
  11. प्रिय श्वेता जी -- समाज में पति के साथ एक लड़की के अनगिन सपनों की भी मौत हो जाती है | भारतीय समाज में तो पति के साथ ही सुहागन का जीवन रगों और श्रृंगार से भरा माना जाता है | आपकी रचना में पति के ना रहने पर मन की पीड़ा को बड़े ही प्रभावी और मर्मस्पर्शी शब्दों में पिरोया गया है | ये शब्दों में पिरोया एक विधवा का क्रंदन है जिसे पढ़कर जीवन से मायूस नारी का दिल दहला देने वाला चित्र उभरता है | एक नारी के जीवन में जीवन साथी से बढ़कर क्या ? उसके बिना उसका जीवन परकटे पंछी जैसा हो जाता होगा | थोड़े शब्दों में कहूँ तो आपकी लेखनी ने वैधव्य के इस करुणतम काव्य चित्र को उकेर एक और नायाब सृजन को जन्म दिया है | मन को विदीर्ण और निशब्द करती ये रचना अपने आप में अनूठी और हर सराहना से परे है | सस्नेह --

    ReplyDelete

    ReplyDelete
  12. मार्मिक हृदयस्पर्शी व्यथा

    ReplyDelete
  13. बहुत मार्मिक रचना

    ReplyDelete
  14. छलकी है सपनीली अँखियाँ
    रोये घर का कोना-कोना
    हाथ पकड़कर लाये थे तुम
    साथ छूटा हरपल का रोना
    जनम बंध रह गया अधूरा
    रब ही जाने रब का टोना।।

    बहुत मार्मिक और सवेंदनशील। रब ही जाने रब का टोना। ह्रदय विदीर्ण रचना। एक नये और अछूते विषय को आपकी कलम ने बख़ूबी छुआ है।

    ReplyDelete
  15. विधवा की मनोदशा और उसकी दयनीय स्थिति का बहुत ही बहुत ही मार्मिक वर्णन किया हैं स्वेता जी आपने। बहुत सुंदर।

    ReplyDelete
  16. जिंदगी के अनजान और लंबे सफर में कभी अकेले ही चलना होता है। वक्त की निष्ठुरता को अपनाना होता है और जीवन में जीने के लिए नए रास्ते ढूंढेने होते हैं।
    श्वेता जी आपने इस रचना में मर्मांतक पीड़ा की पराकाष्ठा उत्पन्न कर दी है। वाचक शुरू से लेकर अंत तक रचना में इस पीड़ा से अपने आप को जुड़ा हुआ पाता है। रचना की अंतिम पंक्तियां बेहद मार्मिक हो गई हैं। लिखते रहिए। बधाई एवं शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  17. बहुत ही हृदयस्पर्शी,मर्मस्पर्शी रचना....
    विधवा की मनोस्थिति का अद्भुत चित्रण
    वाह!!!

    ReplyDelete
  18. कितना दर्द लिख दिया आपने... वैधव्य की मारी एक नारी ही जानती है.पति के मर जाने का दर्द उसके जाने के बाद उसके हर तरफ होने का अहसास.खालीपन..खाली कलाईयों की टीस...सुनी मांग का सुनापन..हर पीड़ा का सजीव चित्रण,आंखें भर आईं जीवन की इस कड़वी सच्चाई को देखकर... आपने बहुत ही संवेदनशील विषय चुना...जिससे हर औरत का सच जुड़ा है।
    बहुत नमन है आपको इस रचना हेतु ।

    ReplyDelete
  19. आपने हृदय को पूरा ही कुरेद दिया। मानो आँखों में आसूँ अब थमना नही चाहते हो। आचानक ही इससे कुछ जुड़ा घटना सामने चलने लगा...। एक डर का भी अहसास हुआ...बेटा हूँ जो।
    श्वेता जी, आपने अपनी लेखनी की शक्ति से इस रचना को पूरी तरह से सजीव कर दिया है।

    ReplyDelete
  20. समय की क्रूर मार को ... एक अवस्था जो समय के हाटों कब आ जाये ...आपने बहुत मार्मिकता से लिखा है ...
    बहुत ही संवेदनशील रचना है ... सजीव चित्रण किया है आपने ...

    ReplyDelete
  21. मर्मस्पर्शी

    ReplyDelete
  22. जनम बंध रह गया अधूरा
    रब ही जाने रब का टोना।।

    बहुत मार्मिक और सवेंदनशील।

    ReplyDelete
  23. छलकी है सपनीली अँखियाँ
    रोये घर का कोना-कोना
    हाथ पकड़कर लाये थे तुम
    साथ छूटा हरपल का रोना
    जनम बंध रह गया अधूरा
    रब ही जाने रब का टोना
    अत्यंत भावपूर्ण, मर्मस्पर्शी.

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...