Sunday, 28 January 2018

तितली


                            मुद्दतों बाद 
आज फिर से
भूली-बिसरी 
राहों से गुज़रते 
हरे मैदान के 
उपेक्षित कोने में  
गुलाब के सूखे झाड़
ने थाम लिया दुपट्टा मेरा
टूटकर बिखरी पंखुड़ियाँ 
हौले से
छू गयी पाँव की उंगलियां
सुर्ख रंग
पोरों से होकर
ठिठुरती धूप में फैल गयी
काँपती धड़कनों में,
कुनकुनी किरणें 
अथक प्रयास करने लगी
जमी वादियों की बर्फ़ पिघलाने की
एक गुनगुना एहसास 
बंद मुट्ठियों तक आ पहुँचा
पसीजी हथेलियों की 
आडी़ तिरछी लकीरों से
अनगिनत रंग बिरंगे
सोये ख़्वाब फिर से
ख़्वाहिशों के आँगन में
तितली बन उड़ने लगे।
               -----श्वेता🍁

14 comments:

  1. वाह!!!श्वेता जी क्या कमाल लिखती है आप!!बहुत ही सुंंदर ।

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  2. आपकी लिखी रचना सोमवारीय विषय विशेषांक "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 29 जनवरी 2018 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. वाह...
    श्वेता जी,अति सुंदर.
    पूरा दृश्य सजीव हो उठा.
    उड़ने दीजिए ख्वाहिशों को पर लगा कर.

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  4. कमाल की रचना । बहुत सुंदर। सादर

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  5. मन के रेशमी एहसास और सुकोमल शब्दावली !!!!!!!! जाने पहचाने अंदाज में अप्रितम रचना | प्रिय श्वेता आपका जवाब नहीं | मेरी शुभकामनाएं |

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  6. प्रेम के महीन अहसासों और उम्र की नाजुक स्मृतियों की अनुभतियों को कमाल के शब्द और अभिव्यक्ति दे दी है इस रचना में
    सुंदर सृजन इसे ही कहते हैं
    ढेर सारी बधाई

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  7. वाह ! क्या बात है ! खूबसूरत एहसास ! लाजवाब प्रस्तुति !! बहुत सुंदर आदरणीया ।

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  8. बहुत सुंदर मनमोहक रचना
    बहुत बहुत बधाई

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  9. बहुत सुंदर रचना, स्वेता।

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  10. कमाल..बस..
    कमाल की रचना..

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  11. वाह बहुत सुंदर रचना 👌

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  12. बहुत सुंदर शब्दांकन एवं भावाभिव्यक्ति !

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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