Sunday 22 April 2018

अस्तित्व के मायने

बड़ी हसरत से देखता हूँ
वो नीला आसमान 
जो कभी मेरी मुट्ठी में था,
उस आसमान पर उगे
नन्हें सितारों की छुअन से
किलकता था मन
कोमल बादलों में उड़कर
चाँद के समीप
रह पाने का स्वप्न देखता रहा
वक़्त ने साज़िश की 
या तक़दीर ने फ़ैसला लिया
जलती हवाओं ने
झुलसाये पंख सारे
फेंक दिया तपती मरूभूमि में
कहकर,भूल जा 
नीले आसमान के ख़्वाबगाह में
नहीं उगते खनकदार पत्ते
टिमटिमाते सितारों से
नहीं मिटायी जा सकती है भूख,
और मैं
अपने दायरे के पिंजरें 
क़ैद  कर दिया गया 
बांधे गये पंखों को फड़फड़ाकर
मैं बे-बस देख रहा हूँ
ज़माने के पाँव तले कुचलते
मेरे नीले आसमान का कोना
जो अब भी मुझे पुकारता है
मुस्कुराकर अपनी  बाहें पसारे हुये
और मैं सोचता हूँ अक्सर 
एक दिन 
मैं छूटकर बंधनों से
भरूँगा अपनी उड़ान
अपने नीले आसमान में
और पा लूँगा
अपने अस्तित्व के मायने

#श्वेता सिन्हा 

22 comments:

  1. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति
    सुंदर रचना

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  2. वाह!!श्वेता ,बहुत सुंदर ...।

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  3. सुन्दर रचना.

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  4. बड़ी हसरत से देखता हूँ......अस्तित्व के मायने...फड़फड़ाते पंखों में ' मन के पाखी ' के!!!

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  5. रचना के तौर पर बहुत ही अच्छा है
    पर आप की हथेली में उगता सूरज ही अच्छा लगता है
    निराशा कभी श्वेत नही होती श्वेत रंग तो प्रकाश फैलाता है
    हौसला बढाता है और रंगहीन जीवन में सपने सजाता है

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  6. वाह श्वेता लाजवाब!! आशा निराशा के मिलेजुले भाव, शानदार अभिव्यक्ति पर इतना कहूंगी

    रात का तम जितना गहरा
    होगा
    सूरज उतना चमकीला होगा,

    ढ़लता सूरज मजबूर सही
    उगता सूरज मजबूर नही
    जितना गहरी तम की रैन
    उतनी सुंदर होगा दिन।

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  7. बहुत खूबसूरत रचना..श्वेता जी हर भाव को बांध लेती है।

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  8. प्रिय श्वेता -- एक पाखी मन का हो या नभ का जब उसकी आजादी छिन जाती है तो वह सचमुच अस्तित्वहीन हो जाते है | आखिर अस्तित्व ही जीबन का आधार है | बहुत ही सधे शब्दों में आपने उस स्थिति को उकेरा है | सुंदर रचना -----------

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  9. निमंत्रण

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  10. वाह प्रिय श्वेता जी आशा निराशा के मध्य झूलते भाव ........शब्दों की कारीगरी अति सुन्दर बहाव
    👌👌👌👌
    जीवन का कटु सत्य उजागर करता है हर अल्फाज दुख सुख हर्ष विषाद सब जीवन के ही भाग ! हाँ कोशिश तो करनी होगी निकलो पंख पसार तोड़ के पिंजरा उड़ जाये पंछी तो हाथों मैं आकाश

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  11. आशावाद की ओर
    बेहद सुन्दर
    सादर

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  12. आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 24 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  13. वाव्व स्वेता,बहुत ही सुंदर शब्दो में जीवन के कटु सत्य को उजागर किया हैं आपने।

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  14. भावों का सजीव चित्रण.

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  15. बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना...
    ऊँची उड़ान भरने की आकांक्षा रखने वाला मन जब हकीकत के धरातल पर रेंगता रह जाता है तब सम्भवतः इन्हीं भावों से होकर गुजरता है...आसान नहीं इन भावों को शब्दों में पिरोना.....
    अद्भुत बेहतरीन एवं लाजवाब रचना श्वेता जी!
    वाह!!!!

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  16. वाआआह अनुपम सृजम

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  17. अद्भुत शब्द संयोजन बखूबी शब्दों को पिरोया है सुन्दर रचना है बधाई श्वेता जी :)

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  18. अद्भुत,... अवर्णनीय... निःसंदेह एक अनोखे तरह से पेश किया आपने, प्रकृति के प्रति यह आत्मीयता बेशक सराहनीय है। अनेकानेक शुभकामनाएँ एवं भविष्य में भी इस तरह की बहुतों रचनाओं के लिए शुभेच्छाएँ आदरणीया...👌👌👌👏👏👏💐💐💐

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  19. बहुत कुछ होता है जीवन में संसार में रो अपने अस्तित्व को लगातार चोट देता है उसके मायने ख़त्म होने लगते हैं पर फिर अपनी उड़ान को बल देना होता है ... स्वतः हिम्मत से उठना होता है और पाना होता है अपना आसमान ...
    बहुत भावपूर्ण रचना है ...

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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