मन से मन के बीच
बंधी नेह की डोर पर
सजग होकर
कुशल नट की भाँति
एक-एक क़दम जमाकर
चलना पड़ता है
टूटकर बिखरे
ख़्वाहिशों के सितारे
जब चुभते है नंगे पाँव में
दर्द और कराह से
ज़र्द चेहरे पर बनी
पनीली रेखाओं को
छुपा गुलाबी चुनर की ओट से
गालों पर प्रतिबिंबिंत कर
कृत्रिमता से मुस्कुराकर
टूटने के डर से थरथराती डोर को
कस कर पकड़ने में
लहलुुहान उंगलियों पर
अनायास ही
तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श के घर्षण से
बुझते जीवन की ढेर में
लहक उठकर हल्की-हल्की
मिटा देती है मन का सारा ठंड़ापन
उस पल सारी व्यथाएँ
तिरोहित कर
मेरे इर्द-गिर्द ऑक्टोपस-सी कसती
तुम्हारे सम्मोहन की भुजाओं में बंधकर
सुख-दुख,तन-मन,
पाप-पुण्य,तर्क-वितर्क भुलाकर
अनगिनत उनींदी रातों की नींद लिए
ओढ़कर तुम्हारे एहसास का लिहाफ़
मैं सो जाना चाहती हूँ
कभी न जागने के लिए।
---श्वेता सिन्हा
sweta sinha जी बधाई हो!,
आपका लेख - (नेह की डोर ) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
धन्यवाद, शब्दनगरी संगठन
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteप्रिय श्वेता जी ,
ReplyDeleteबेहतरीन रचना 👌,
बुझते जीवन की ढेर में
लहक उठकर हल्की-हल्की
मिटा देती है मन का सारा ठंड़ापन
उस पल सारी व्यथाएँ . ....
अंतर्मन में घूमती कश्मकश कभी-कभी किसी निष्कर्ष पर पहुँच जाती है और बिम्ब किसी अभिव्यक्ति में उभर आते हैं। गहरी परतों में तड़प का एहसास समाया होता है। सुन्दर रचना। लिखते रहिये।
ReplyDeleteवाह , भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteनेह की डोर--अंतर्मन के द्वंद का सजीव चित्रण है---इस रचनामें आप ने मन में बसे रिश्तों के संसार को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है--इस सफल रचना के लिए बधाई---
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना 👌
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, श्वेता दी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना 👌
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 01 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसो जा राजकुमारी सो जा !
ReplyDeleteसो जा मीठे सपने आएं, सपनों में पी दरस दिखाएं ----
संभल कर चलना रिश्तों की कोमल डोर न टूटे .... लहुलुहान हाथों पे मरहम सा स्पर्श अनायास ठंडक छिड़क देता है ...
ReplyDeleteमन मयूर तब नाच उठता है और गहरी नींद में जाने को आतुर हो जाता है ... भावभीनी रचना है ...
तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श के घर्षण से
ReplyDeleteबुझते जीवन की ढेर में
लहक उठकर हल्की-हल्की
मिटा देती है मन का सारा ठंड़ापन
नेह से रची नेह की डोर...
बहुत लाजवाब....