Wednesday 28 November 2018

नेह की डोर


मन से मन के बीच
बंधी नेह की डोर पर
सजग होकर 
कुशल नट की भाँति
एक-एक क़दम जमाकर 
चलना पड़ता है
टूटकर बिखरे
ख़्वाहिशों के सितारे
जब चुभते है नंगे पाँव में 
दर्द और कराह से 
ज़र्द चेहरे पर बनी
पनीली रेखाओं को
छुपा गुलाबी चुनर की ओट से 
गालों पर प्रतिबिंबिंत कर
कृत्रिमता से मुस्कुराकर
टूटने के डर से थरथराती डोर को
कस कर पकड़ने में
लहलुुहान उंगलियों पर
अनायास ही 
तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श के घर्षण से
बुझते जीवन की ढेर में
लहक उठकर हल्की-हल्की
मिटा देती है मन का सारा ठंड़ापन
उस पल सारी व्यथाएँ 
तिरोहित कर 
मेरे इर्द-गिर्द ऑक्टोपस-सी कसती
तुम्हारे सम्मोहन की भुजाओं में बंधकर 
सुख-दुख,तन-मन,
पाप-पुण्य,तर्क-वितर्क भुलाकर 
अनगिनत उनींदी रातों की नींद लिए
ओढ़कर तुम्हारे एहसास का लिहाफ़
मैं सो जाना चाहती हूँ 
कभी न जागने के लिए।

---श्वेता सिन्हा

sweta sinha जी बधाई हो!,

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धन्यवाद, शब्दनगरी संगठन








14 comments:

  1. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति

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  2. प्रिय श्वेता जी ,
    बेहतरीन रचना 👌,
    बुझते जीवन की ढेर में
    लहक उठकर हल्की-हल्की
    मिटा देती है मन का सारा ठंड़ापन
    उस पल सारी व्यथाएँ . ....

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  3. अंतर्मन में घूमती कश्मकश कभी-कभी किसी निष्कर्ष पर पहुँच जाती है और बिम्ब किसी अभिव्यक्ति में उभर आते हैं। गहरी परतों में तड़प का एहसास समाया होता है। सुन्दर रचना। लिखते रहिये।

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  4. वाह , भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. नेह की डोर--अंतर्मन के द्वंद का सजीव चित्रण है---इस रचनामें आप ने मन में बसे रिश्तों के संसार को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है--इस सफल रचना के लिए बधाई---

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  6. वाह!!श्वेता ,बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति !!

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  7. बेहतरीन रचना 👌

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  8. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, श्वेता दी।

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  9. बहुत सुंदर रचना 👌

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  10. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  11. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 01 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  12. सो जा राजकुमारी सो जा !
    सो जा मीठे सपने आएं, सपनों में पी दरस दिखाएं ----

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  13. संभल कर चलना रिश्तों की कोमल डोर न टूटे .... लहुलुहान हाथों पे मरहम सा स्पर्श अनायास ठंडक छिड़क देता है ...
    मन मयूर तब नाच उठता है और गहरी नींद में जाने को आतुर हो जाता है ... भावभीनी रचना है ...

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  14. तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श के घर्षण से
    बुझते जीवन की ढेर में
    लहक उठकर हल्की-हल्की
    मिटा देती है मन का सारा ठंड़ापन
    नेह से रची नेह की डोर...
    बहुत लाजवाब....

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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