Monday 22 July 2019

कोख


स्त्री अपनी पूर्णता 
कोख में अंकुरित,
पल्लवित बीज,
शारीरिक,मानसिक,
जैविक बदलाव
महसूस कर
गर्वित होती है
जो प्रत्यक्ष 
देखा-समझा जा
सकता है।

पर क्या....
आपने महसूस 
किया है कभी
पिता बनते पुरुष की 
अदृश्य कोख
जिसमें पलते हैं
स्त्री की कोख के
समानांतर
अनगिनत,अनगढ़
स्वप्नों के बीज।

अपने अव्यक्त मन की
कोख को सींचकर
नन्हीं आशाओं की
अनछुई लकीरों से
शिशु के भविष्य की
एक-एक कोशिका
प्रतिदिन जोड़ता,गढ़ता
पालता है जतन से
आकार लेने तक।

प्रसव-पीड़ा से 
छटपटाती माँ की तरह
पीकर विष का घूँट
रखकर मान-अपमान परे
संतान की ख़ुशियाँ
जुटाने के लिये 
निरंतर कर्मशील
बिना चीख़े
वो सहता रहता है
सपनेे जन्मने के बाद भी
आजीवन
प्रसव का दर्द।

कोख दृश्य हो कि अदृश्य
एक संतान के लिये
कोख साझा करते
माता-पिता
उसके इर्द-गिर्द
बुनते रहते हैं
अदृश्य कवच
आजीवन
और....
सिलते रहते हैं 
अपनी कामनाओं का
फटा आसमान...। 
गूलते रहते हैं आशीष
सृष्टि की अनदेखी 
परमशक्तियों की तरह...।

 #श्वेता सिन्हा

12 comments:

  1. सच में स्वेता जी सृष्टि की अनदेखी परम शक्ति के तरह माता -पिता अपने संतान के लिए आशिषों के पुल तैयार करते रहते हैं

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन श्वेता दी,
    पिता की कोख़ को बहुत ही सुन्दर सृजन से निखारा है
    हृदय स्पर्शी रचना
    सादर

    ReplyDelete
  3. बिना चीखे
    वो सहता रहता है
    सपनेे जन्मने के बाद भी
    आजीवन
    प्रसव का दर्द।

    संवेदनशील लेखनी न्याय करती

    ReplyDelete
  4. `वहीं प्रसूत
    बनता एक दिन
    सपूत-सा सुत
    जब थाम लेता
    अंगुलियाँ,
    वृद्ध-लाचार-से
    पिता की अपने.
    होती तभी दृश्य
    वह अदृश्य-सी कोख
    पिता की.
    वरना, सहना पड़ता
    भीषण आघात,
    अरमानों के
    भ्रूणपात का!

    ReplyDelete
  5. अपने अव्यक्त मन के
    कोख को सींचकर
    नन्हीं आशाओं की
    अनछुई लकीरों से
    शिशु के भविष्य की
    एक-एक कोशिका
    प्रतिदिन जोड़ता,गढ़ता
    पालता है जतन से
    आकार लेने तक।
    बेहतरीन...
    सादर

    ReplyDelete
  6. पापा का प्यार, स्नेह दुलार ....... को शब्द देने के लिए धन्यवाद !
    प्यारी सी कविता

    ReplyDelete
  7. एक संतान के लिए
    कोख साझा करते
    माता-पिता
    उसके इर्द-गिर्द
    बुनते रहते हैं
    अदृश्य कवच
    आजीवन
    और....
    सिलते रहते हैं
    अपनी कामनाओं का
    फटा आसमान...।
    वाह!!!
    बेहद प्रभावशाली लाजवाब सृजन...
    अदृश्य कोख पिता की...बहुत ही लाजवाब।

    ReplyDelete
  8. पिता को समर्पित बहुत ही प्रभावी और भावनात्मक कविता

    ReplyDelete
  9. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 25 जुलाई 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  10. वाह!!!श्वेता ,एक पिता के दिल की बात का बखूबी से
    वर्णन किया है आपने । लाजवाब!!

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर और सार्थक रचना

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...