मनमुताबिक थोड़ी जहां होता है
मात्र "इच्छा"करना ही आसान है
इच्छाओं की गाँठ से मन बंधा होता है
आसान नहीं होता प्रेम निभा पाना
प्रेम में डूबा मन डिगा पाना
इच्छित ख़्वाबों की ताबीर हो न हो
रंग तस्वीरों का अलहदा होता है
आसान होता है करना मृत्यु की इच्छा
और मृत्यु की आस में जीने की उपेक्षा
अप्राप्य इच्छाओं की तृष्णा से विरक्त
जीवन वितृष्णाओं से भुरभुरा होता है
हाँ,इच्छाओं को बोना आसान होता है
इच्छा मन का स्थायी मेहमान होता है
ज़मी पर भावनाओं की पर्याप्त नमी से
इच्छाओं का अंकुरण सदा होता है।
#श्वेता सिन्हा
वाहः सुंदर लेखन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार दी सादर शुक्रिया।
Delete"मन में भावनाओं की पर्याप्त नमी से
ReplyDeleteइच्छाओं का अंकुरण सदा होता है।"... फिर...
आशाओं की हवा से पल्लवित होता है,
भरोसे की नर्म धूप से पुष्पित होता है ..
इच्छाओं के झूला पर ऊपर-नीचे दोलन करती ज़िंदगी की तस्वीर ...
रचना का भाव स्पष्ट करती सुंदर प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आपका शुक्रिया बहुत सारा मध से।
Deleteप्रकृति और प्रेम की चितेरी श्वेता का दार्शनिक रूप भी सुन्दर है.
ReplyDeleteआसान कुछ भी कहाँ होता है
ReplyDeleteमनमुताबिक थोड़ी जहां होता है
बेहतरीन शुरुआत..
सादर..
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/08/2019 की बुलेटिन, "प्रथम पुण्यतिथि पर परम आदरणीय स्व॰ अटल बिहारी वाजपाई जी को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअति सुंदर रचना।
ReplyDeleteअतिसुन्दर रचना
ReplyDeleteजीवन तृष्णाओं से भुरभुरा होता है - सत्य वचन।
ReplyDeleteआसान होता है करना मृत्यु की इच्छा
ReplyDeleteऔर मृत्यु की आस में जीने की उपेक्षा
अप्राप्य इच्छाओं की तृष्णा से विरक्त
जीवन वितृष्णाओं से भुरभुरा होता है....
सुंदर और सशक्त लेखन । शुभकामनाएं स्वीकार करें ।
वाह आदरणीया दीदी जी अद्भुत,सुंदर
ReplyDelete' इच्छा ' एक एसी प्यास जो कभी नही बुझती
सादर नमन
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteइच्छाओं के मनोविज्ञान को पात्र दर पात्र खोलती है आपकी रचना ...
ReplyDeleteआसान है हर इच्छा पालना ... ये कभी किसी उम्र में नहीं रोकती ... लाजवाब भावपूर्ण रचना है ...
आशाओं की हवा से पल्लविल होता है।
ReplyDeleteभरोसे के नर्म धूप से पुष्पित होता है।
वाह।बहुत सुंदर पंक्तियाँ।बेहतरीन।
आसान होता है करना मृत्यु की इच्छा
ReplyDeleteऔर मृत्यु की आस में जीने की उपेक्षा
अप्राप्य इच्छाओं की तृष्णा से विरक्त
जीवन वितृष्णाओं से भुरभुरा होता है
वाह!!!!
अप्राप्य इच्छाओं की तृष्णा से विरक्त
बहुत ही लाजवाब दार्शनिक भाव लिए
उत्कृष्ट सृजन
लाजवाब व भावपूर्ण रचना.. बेहतरीन सृजन श्वेता ।
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,सुंदर भावों से सजी रचना !
ReplyDelete