Monday, 26 August 2019

शिला




निर्जीव और बेजान   
निष्ठुरता का अभिशाप लिये
मूक पड़ी है सदियों से
स्पंदनहीन शिलाएँ
अनगिनत प्रकारों में
गढ़ी जाती 
मनमाना आकारों में
बदलते ऋतुओं में 
प्रतिक्रियाहीन
समय की ठोकर में
बिना किसी शिकायत
निःशब्द टूटती-बिखरती
सहज मिट्टी में मिल जाती
गर्व से भरी शिलाएँ

हाँ, मैंने महसूस किया है
शिलाओं को कुहकते हुये
मूक मूर्तियों में गढ़ते समय 
औजारों की मार सहकर
दर्द से बिलखते हुये
नींव बनकर चुपचाप 
धरती की कोख में धँसते हुये
लुटाकर अस्तित्व वास्तविक
आत्मोत्सर्ग से दमकते हुये

आसान नहीं
सदियों
समय के थपेड़ों को
सहनकर
धारदार परिस्थितियों
से रगड़ाकर,टकराकर
निर्विकार रहना
अधिकतर शिलायें
खो देती है अपना स्वरूप
मिट जाती है यूँ ही
और कुछ
जो सह जाती है
समय की मार
परिस्थितियों का आघात
साधारण शिला से
असाधारण "शिव" और
शालिग्राम बनकर
पूजी जाती हैं
पारस हो जाती है।

#श्वेता सिन्हा

22 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2ॉ7-08-2019) को "मिशन मंगल" (चर्चा अंक- 3440) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
    उम्दा रचना

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  3. सारगर्भित विचारों का एक संयोजित शब्दचित्रण ... हर निर्माण में समर्पण का अनिवार्य होना ... एक संकेत ... एक सन्देश ...

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  4. साधारण शिला से
    असाधारण "शिव" और
    शालिग्राम बनकर
    पूजी जाती हैं
    पारस हो जाती है।
    बहुत सुन्दर सटीक ....
    इन शिलाओं का भी नसीब ही तो होता होगा न कोई पूजनीय बन जाती है तो कोई वर्षों ठोकर खाती है...
    बहुत लाजवाब सृजन

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  5. पत्थर तुम सिर्फ ठोकरों में नहीं रहते
    शिव बन जाते हो जब मार छैनी हथोड़े की सहते।

    बहुत सुंदर मानवीयकरण संवेदनाओं का गहरा चित्रण करती उत्तम रचना।

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  6. वाह! शिला को भी अपना ऐसा काव्यात्मक विवेचन मोहित कर सकता है. आपका कल्पनालोक और सटीक चिंतन की प्रक्रिया बेजोड़ हैं.
    रचना बहुत अच्छी बन पड़ी है.
    बधाई एवं शुभकामनाएँ.

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  7. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 27 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  8. वाह बेहद शानदार सृजन

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  9. वाह !लाज़बाब सृजन श्वेता दी
    सादर

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  10. समय की मार
    परिस्थितियों का आघात
    साधारण शिला से
    असाधारण "शिव" और
    शालिग्राम बनकर
    पूजी जाती हैं
    पारस हो जाती है।
    वाह !! उत्कृष्ट सृजन श्वेता ।

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  11. वाह!!,श्वेता ,अद्भुत सृजन👍👍👍

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  12. शिलाएं जी उठती हैं अहिल्या बन कर भी ... शिव के अस्तित्व को जीती हैं शिलाएं ... कृष्ण के भावों से संचरित होती हैं शिलाएं ... उत्कृष्ट लेखन के शब्दों में भी उतरती हैं शिलाएं ...जैसे की इस रचना में ...

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  13. ,समय की ठोकर में
    बिना किसी शिकायत
    निःशब्द टुटती-बिखरती
    सहज मिट्टी में मिल जाती।
    वाह बहुत सुंदर ।
    सहज भावों की प्रक्रिया।
    उत्कृष्ट।

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  14. शिला एक ही रहती हैं लेकिन हर शिला का भाग्य तय करता हैं कि वो क्या बनेगी। पत्थर बनेगी या पूजी जाएगी। बहुत सुंदर रचना, श्वेता दी।

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  15. बहुत सुन्दर श्वेता ! हम सब पत्थर-दिल वहशी भी, ख़ुद को तराश कर, देवी-देवता में ढाल सकते हैं.

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  16. वाह! अद्भुत।

    "..
    और कुछ
    जो सह जाती है
    समय की मार
    परिस्थितियों का आघात
    साधारण शिला से
    असाधारण "शिव" और
    शालिग्राम बनकर
    पूजी जाती हैं
    पारस हो जाती है।

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  17. बहुत सुन्दर भाव |

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  18. बहुत सुंदर रचना

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  19. वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
    विट्ठल विट्ठल विट्ठला हरी ॐ विठाला mp3 Download

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  20. आज तो शिला का रूप भी कुंदन सा दमका दिया आपने
    ये जादू तो आप जैसी प्रकृति की उपासक के लिए ही संभव है
    वाह अनुपम सुंदर रचना
    सादर नमन

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  21. वाह।शिला के दिल को भी पढ़ लिया अपने,उसके हृदय के उदगार को भली भांति व्यक्त किया हैं।

    आसान नहीं
    सदियों
    समय के थपेड़ों को
    सहनकर
    धारदार परिस्थितियों
    से रगड़ाकर,टकराकर
    निर्विकार रहना

    सादर

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  22. एक शिला से शालिग्राम तक का सफ़र ... का अनूठा शब्द-चित्रण ...

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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