दामन काँटों से भरना क्यों?
जीने के ख़ातिर मरना क्यों?
रब का डर दिखलाने वालों
ख़ुद के साये से डरना क्यों?
न दर्द,न टीस,न पीव-मवाद
ऐसे जख़्मों का पकना क्यों?
जो मिटा चुकी यादें गलियाँ
उनके तोहफों को रखना क्यों?
यह जग बाजा़र है चमड़ी का
यहाँ मन का सौदा करना क्यों?
सब छोड़ यहीं उड़ जाना है
पिंजरे के मोह में झंखना क्यों?
#श्वेता सिन्हा
उव्वाहहहह...
ReplyDeleteबेहतरीन..
सादर..
यह जग बाजा़र है चमड़ी का
ReplyDeleteयहाँ मन का सौदा करना क्यों? ... और
सब छोड़ यहीं उड़ जाना है
पिंजरे के मोह में झखना क्यों?...
... दर्शन और लौकिक दुनिया का संगम ... एक अच्छा तुकान्त प्रयोग ...
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteसब छोड़ यहीं उड़ जाना है
ReplyDeleteपिंजरे के मोह में झंखना क्यों?
सुन्दर रचना हेतु बधाई ।
उत्तम रचना
ReplyDeleteसब छोड़ यहीं उड़ जाना है
ReplyDeleteपिंजरे के मोह में झंखना क्यों?
वाह!!!!
क्या बात....
बिन्दास जीने की सीख देती बहुत ही लाजवाब रचना...
रब का डर दिखलाने वालों
ख़ुद के साये से डरना क्यों?
वाह!!!!
सब छोड़ यहीं उड़ जाना है
ReplyDeleteपिंजरे के मोह में झंखना क्यों?
अगर ये सत्य समझ लें तो सारा झगड़ा ही खत्म।
सुंदर सीख देती आध्यात्मिक सी रचना सरस सहज प्रवाह लिए अभिनव सृजन प्रिय श्वेता ।
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआध्यात्मिक दर्शन कहूँ या जीवन दर्शन....जीवन जीने का उचित ज्ञान देती बहुमूल्य पाठ पढ़ाती आपकी पंक्तियों को कोटिशः नमन।
ReplyDeleteनारायण आपकी पंक्तियों में निहित संदेश सबके मन तक पहुँचाए
उत्तम रचना आदरणीया दीदी जी सादर नमन
वाह ...
ReplyDeleteसच की अभिव्यक्ति है हर शेर ... मन में उतरता हुआ ...
दार्शनिक अंदाज़, कुछ कडुवे ... कुछ सोचने को मजबूर करते हुए ...
वाह!!श्वेता ,अद्भुत!!
ReplyDeleteबहुत शानदार
ReplyDeleteवाह श्वेता ! बड़ा सूफ़ियाना क़लाम है.
ReplyDeleteबेहतरीन व लाजवाब भावाभिव्यक्ति... बहुत उम्दा सृजन श्वेता ।
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ReplyDeleteरब जो साया है हमीं का उससे कैसा डरना.... गजब गजब
ReplyDeleteजहाँ कोड़ियां चलन में हो वहाँ अमूल्य चीज नहीं रखी जाती... वाह वाह
जख्मो की पीड़ा सहन के बाद ही कोई सून हो सकता है... आहाहा
अति उत्तम...अति उत्तम