Tuesday, 24 December 2019

सेंटा


मेरे प्यारे सेंटा 
कोई तुम्हें कल्पना कहता है
कोई यथार्थ की कहानी,
तुम जो भी हो 
लगते हो प्रचलित
लोक कथाओं के 
सबसे उत्कृष्ट किरदार,
स्वार्थी,मतलबी,
ईष्या,द्वेष से भरी
इंसानों की दुनिया में
तुम प्रेम की झोली लादे
बाँटते हो खुशियाँ
लगते हो मानवता के
साक्षात अवतार।

छोटी-छोटी इच्छाओं,
खुशियों,मुस्कुराहटों को,
जादुई पोटली में लादे
तुम बिखेर जाते हो
अनगिनत,आश्चर्यजनक
 उपहार,
सपनों के आँगन में,
वर्षभर तुम्हारे आने की
राह देखते बच्चों की
मासूम आँखों में
नयी आशा के
अनमोल अंकुर
बो जाते हो।

सुनो न सेंटा!
क्या इस बार तुम
अपनी लाल झोली में
मासूम बच्चों के साथ-साथ
बड़ों के लिए भी 
कुछ उपहार नहीं ला सकते?
कुछ बीज छिड़क जाओ न
समृद्धि से भरपूर
हमारे खेतों में,
जो भेद किये बिना
मिटा सके भूख
कुछ बूँद ले आओ न
जादुई  
जो निर्मल कर दे
जलधाराओं को,
ताल,कूप,नदियाँ
तृप्त हो जाये हर कंठ,
शुद्ध कर दो न...
इन दूषित हवाओं को,
नष्ट होती 
प्रकृति को दे दो ना
अक्षत हरीतिमा का आशीष।

तुम तो सदियों से करते आये हो
परोपकार, 
इस बार कर दो न चमत्कार,
वर्षों से संचित पुण्य का
कुछ अंश कर दो न दान
जिससे हो जाये 
हृदय-परिवर्तन
और हम बड़े भूलकर
क्रूरता,असंवेदनशीलता
विस्मृत इंसानियत
महसूस कर सके
दूसरों की पीड़ा,
व्यथित हो करुणा से भरे
हमारे हृदय,
हर भेद से बंधनमुक्त 
गीत गायें प्रेम और
मानवता के,
हम मनुष्य बनकर रह सके
धरा पर मात्र एक मनुष्य।

#श्वेता

22 comments:

  1. Replies
    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ सर।
      सादर।

      Delete
  2. सांता ! श्वेता की सुनो और उस पर अमल करो !

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ सर।
      सादर।

      Delete
  3. बहुत सुंदर सृजन है प्रिय श्वेता बच्चे भी आनंद उठायेंगे।
    भावना भी बहुत परहिताय है ।काश संता ऐसा करता और सब और खुशियां छाई जाती ।
    सुंदर भाव सुंदर गूंथन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी दी बहुत-बहुत आभारी हूँ।
      सादर।

      Delete
  4. Replies
    1. जी दी बहुत-बहुत आभारी हूँ।
      सादर।

      Delete
  5. बेहद सुंदर । विनती भरी अनुनय।सांता तुम्हारी आकांक्षा पूरी करें।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभारी हूँ दीदी।
      सादर।

      Delete
  6. वाह!श्वेता ,बहुत खूब ।आशा है सेंटा आपकी बात जरूर सुनेंगे ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
      सादर।

      Delete
  7. Replies
    1. जी बहुत-बहुत आभारी हूँ विश्वमोहन जी।
      सादर।

      Delete
  8. कुछ बीज छिड़क जाओ न
    समृद्धि से भरपूर
    हमारे खेतों में,
    जो भेद किये बिना
    मिटा सके भूख
    कुछ बूँद ले आओ न
    जादुई
    जो निर्मल कर दे
    जलधाराओं को,
    बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति श्वेता दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
      सादर।

      Delete
  9. सुनो न सेंटा!
    क्या इस बार तुम
    अपनी लाल झोली में
    मासूम बच्चों के साथ-साथ
    बड़ों के लिए भी
    कुछ उपहार नहीं ला सकते?
    कुछ बीज छिड़क जाओ न
    समृद्धि से भरपूर
    हमारे खेतों में,
    जो भेद किये बिना
    मिटा सके भूख
    कुछ बूँद ले आओ न
    जादुई
    जो निर्मल कर दे
    जलधाराओं को,
    ताल,कूप,नदियाँ
    तृप्त हो जाये हर कंठ,
    शुद्ध कर दो न...
    इन दूषित हवाओं को,
    नष्ट होती.. वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीयa श्वेता दी
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ प्रिय अनु।
      सस्नेह शुक्रिया।

      Delete
  10. शायद कुछ ज्यादा ही मांग रहे हैं हम सेंटा से ...
    इंसान अब उस पर भरोसा कहाँ करता है ... विज्ञान युग में भावनाओं की शायद जगह नहीं ...
    जाने कब जागेगा इंसान ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सर..सच कहा आपने।
      बहुत-बहुत आभारी हूँ सर।
      सादर।

      Delete
  11. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ सुधा जी।
      सादर।

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...