समय की ज़ेब से निकालकर
तिथियों की रेज़गारी
अनजाने पलों के बाज़ार में
अनदेखी पहेलियों की
गठरी में छुपे,
मजबूरी हैं मोलना
अनजान दिवस के ढेरियों को
सुख-दुख की पोटली में
बंद महीनों को ढोते
स्मृतियों में जुड़ते हैं
खनखनाते नववर्ष।
हर रात बोझिल आँखें
बुनती हैं स्वप्न
भोर की किरणों से
जीवन की जरूरतों की
चादर पर खूबसूरत
फुलकारी उकेरने की
कभी राह की सुईयाँ
लहुलुहान कर देती हैं उंगलियाँ
कभी टूट जाते हैं हौसलों के धागे
कर्मों की कढ़ाई की निरंतरता
आशाओं के मोरपंख
कभी अनायास ही जीवन को
सहलाकर मृदुलता से
ख़ुरदरे दरारों में
रंग और खुशबू भर जाते हैं
महका जाते हैं जीवन के संघर्ष
पल,दिवस,महीने और वर्ष।
अटल,अविचल,स्थिर
समय की परिक्रमा करते हैं
सृष्टि के कण-कण
अपनी निश्चित धुरियों में,
विषमताओं से भरी प्रकृति
क्षण-क्षण बदलती है
जीवों के उत्पत्ति से लेकर
विनाश तक की यात्रा में,
जीवन मोह के गुरुत्वाकर्षण
में बँधा प्रत्येक क्षण
अपने स्वरूप नष्ट होने तक
दिन,वार,मास और वर्ष में
बदलते परिस्थितियों के अनुरूप
नवल से जीर्ण की
आदि से अनंत की
दिक् से दिगंत की
अथक यात्रा करता है।
#श्वेता सिन्हा
१/१/२०२०
बड़ी फ़लसफ़ाना सोच है श्वेता !
ReplyDeleteहम तो कहेंगे - सच हों तेरे सारे सपने !
नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !
प्रणाम सर।
Deleteआपका शुभाषीश मिलता रहे सदैव।
आपको भी हार्दिक शुभकामनाएँ सर।
आभार।
सादर।
अद्धभुत लेखन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार दी।
Deleteसादर।
वाह ! बेहद खूबसूरत तरीके से पिरोया हो साल की माला में दिनों और महीनों की मोतियों को ।
ReplyDeleteदिन- महीने- साल गुजरते जाएँ ।
तेरे जीवन में सारी खुशियाँ भरते जाएँ।
नववर्ष मंगलमय हो।
बहुत बहुत आभारी हूँ दीदी।
Deleteसादर।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभारी हूँ आदरणीय।
Deleteसादर।
वाह!!श्वेता ,अद्भुत!आपकी लेखनी निरंतर ,सुंदर रचनाओं का सृजन करती रहे ....👍
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभारी हूँ दी।।
Deleteसादर।
वाह श्वेता. अद्भुत! क्या कहने तुम्हारी लेखनी के
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteसादर।
अहा अतिसुन्दर सृजन अनुजा .... बधाई सहित शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteसादर।
सुंदर रचना, प्रिय श्वेता!!! नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई 🌹🌹🌹🌹🌹
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, श्वेता। नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteसादर।
बहुत बहुत उम्दा
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभारी हूँ.लोकेश जी।
Deleteसादर।
हर रात बोझिल आँखें
ReplyDeleteबुनती हैं स्वप्न
भोर की किरणों से
जीवन की जरूरतों की
चादर पर खूबसूरत
फुलकारी उकेरने की
कभी राह की सुईयाँ
लहुलुहान कर देती हैं उंगलियाँ
कभी टूट जाते हैं हौसलों के धागे
कर्मों की कढ़ाई की निरंतरता
बहुत सुंदर सृजन, सार्थक चिंतन परक ।
मन की अगनित परतों में दबे हर भाव मुखरित होते ।
सुंदर रचना।
बहुत बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteसादर।
जीवन मोह के गुरुत्वाकर्षण
ReplyDeleteमें बँधा प्रत्येक क्षण
अपने स्वरूप नष्ट होने तक
दिन,वार,मास और वर्ष में
बदलते परिस्थितियों के अनुरूप
नवल से जीर्ण की
आदि से अनंत की
दिक् से दिगंत की
अथक यात्रा करता है।
वाह!!!
क्या बात .....
बहुत लाजवाब।
बहुत-बहुत आभारी हूँ सुधा जी।
Deleteसादर।
बहुत-बहुत आभारी हूँ सर।
ReplyDeleteसादर।
बहुत ही सुन्दर रचना सखी, लाजबाव भाव
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ अभिलाषा जी।
Deleteसादर।