(१)
घना अंधेरा कांधे पर
उठाये निरीह रात के
थकान से बोझिल हो
पलक झपकाते ही
सुबह
लाद लेती है सूरज
अपने पीठ पर
समय की लाठी की
उंगली थामे
जलती,हाँफती
अपनी परछाई ढोती
चढ़ती जाती है,
टेढ़ी-मेढ़ी
पहाड़ी की सँकरी
पगडंडियों में उलझकर
क्षीण हो
शून्य में विलीन होनेतक
संघर्षरत
अपनी अस्तित्व की
जिजीविषा में।
(२)
बीज से वृक्ष
तक का संघर्ष
माटी की कोख से
फूटना
पनपना,हरियाना,
फलना-फूलना
सूखना-झरना
पतझड़ से मधुमास
सौंदर्य से जर्जरता के मध्य
स्पंदन से निर्जीवता के मध्य
सार्थकता से निर्रथकता के मध्य
प्रकृति हो या जीव
जग के महासमर में
प्रत्येक क्षण
परिस्थितियों के अधीन
जन्म से मृत्यु तक
जीवन के
मायाजाल में उलझी
जिजीविषा।
#श्वेता सिन्हा
१०/१/२०२०
वाह
ReplyDeleteआभारी हूँ सर।
Deleteसादर।
उव्वाहहहह
ReplyDeleteशानदार रचना..
सादर..
जन्म से मृत्यु तक
ReplyDeleteजीवन के
मायाजाल में उलझी
जिजीविषा।
सुन्दर सत्य..
सादर..
वाह ! दो अलग अलग संघर्ष और उनसे उबरने की जिजीवषा !!! बहुत खूब प्रिय श्वेता। सार्थक रचना।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- ३ (चर्चा अंक - ३५७७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
एक अजीब सी जिजीविषा जगा गई आपकी यह रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया श्वेता जी।
ReplyDeleteप्रकृति हमको मुश्किलों से जूझते रहना सिखाती है.
ReplyDeleteश्वेता दी, यह हमारी जिजीविषा ही हैं जो हमें मुश्किलों से लड़ने की प्रेरणा देती हैं। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteजिजीविषा संघर्षों से उबरने को प्रेरित करती व संघर्ष ही जिजीविषा बढ़ाते....अजीव सामजस्य है
ReplyDeleteप्रकृति हो या जीव
जग के महासमर में
प्रत्येक क्षण
परिस्थितियों के अधीन
जन्म से मृत्यु तक
जीवन के
मायाजाल में उलझी
जिजीविषा।
वाह!!!!
बहुत सटीक लाजवाब सृजन
ReplyDeleteसम्पूर्ण जीवन का सार बस यही हैं , बहुत ही सुंदर सृजन श्वेता जी ,सादर नमन
बेहतरीन सृजन स्वेता।बहुत खूब।
ReplyDeleteवाह बेहतरीन रचना श्वेता जी
ReplyDeleteबेहतरीन भावों से सजी बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर जिजीविषा के इतने सटीक सुंदर पहलू।
ReplyDeleteहर शै उल्फत में है देखो
अपनी ही जिजीविषा में ।
लाजवाब सृजन।
जिजीविषा के साथ त्याग कभी नहीं जुड़ता...कठोरता में भी नहीं।
ReplyDeleteकमाल की रचनाएं।
सुबह का अस्तित्व रात में भी शामिल है...शायद इसके गर्भ में।
उम्दा रचनाएं।