Friday, 10 January 2020

जिजीविषा



(१)
घना अंधेरा कांधे पर
उठाये निरीह रात के
थकान से बोझिल हो
पलक झपकाते ही
सुबह
लाद लेती है सूरज
अपने पीठ पर
समय की लाठी की
उंगली थामे
जलती,हाँफती 
अपनी परछाई ढोती
चढ़ती जाती है,
टेढ़ी-मेढ़ी
पहाड़ी की सँकरी
पगडंडियों में उलझकर
क्षीण हो
शून्य में विलीन होनेतक
संघर्षरत
अपनी अस्तित्व की 
जिजीविषा में।

(२)
बीज से वृक्ष 
तक का संघर्ष  
माटी की कोख से 
फूटना
पनपना,हरियाना,
फलना-फूलना
सूखना-झरना 
पतझड़ से मधुमास
सौंदर्य से जर्जरता के मध्य
स्पंदन से निर्जीवता के मध्य
सार्थकता से निर्रथकता के मध्य
प्रकृति हो या जीव
जग के महासमर में
प्रत्येक क्षण
परिस्थितियों के अधीन
जन्म से मृत्यु तक
जीवन के
मायाजाल में उलझी
जिजीविषा।

#श्वेता सिन्हा
१०/१/२०२०


16 comments:

  1. Replies
    1. आभारी हूँ सर।
      सादर।

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  2. उव्वाहहहह
    शानदार रचना..
    सादर..

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  3. जन्म से मृत्यु तक
    जीवन के
    मायाजाल में उलझी
    जिजीविषा।
    सुन्दर सत्य..
    सादर..

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  4. वाह ! दो अलग अलग संघर्ष और उनसे उबरने की जिजीवषा !!! बहुत खूब प्रिय श्वेता। सार्थक रचना।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- ३ (चर्चा अंक - ३५७७) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    -अनीता सैनी

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  6. एक अजीब सी जिजीविषा जगा गई आपकी यह रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया श्वेता जी।

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  7. प्रकृति हमको मुश्किलों से जूझते रहना सिखाती है.

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  8. श्वेता दी, यह हमारी जिजीविषा ही हैं जो हमें मुश्किलों से लड़ने की प्रेरणा देती हैं। बहुत सुंदर रचना।

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  9. जिजीविषा संघर्षों से उबरने को प्रेरित करती व संघर्ष ही जिजीविषा बढ़ाते....अजीव सामजस्य है
    प्रकृति हो या जीव
    जग के महासमर में
    प्रत्येक क्षण
    परिस्थितियों के अधीन
    जन्म से मृत्यु तक
    जीवन के
    मायाजाल में उलझी
    जिजीविषा।
    वाह!!!!
    बहुत सटीक लाजवाब सृजन

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  10. सम्पूर्ण जीवन का सार बस यही हैं , बहुत ही सुंदर सृजन श्वेता जी ,सादर नमन

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  11. बेहतरीन सृजन स्वेता।बहुत खूब।

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  12. वाह बेहतरीन रचना श्वेता जी

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  13. बेहतरीन भावों से सजी बहुत सुन्दर रचना ।

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  14. वाह बहुत सुंदर जिजीविषा के इतने सटीक सुंदर पहलू।
    हर शै उल्फत में है देखो
    अपनी ही जिजीविषा में ।
    लाजवाब सृजन।

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  15. जिजीविषा के साथ त्याग कभी नहीं जुड़ता...कठोरता में भी नहीं।

    कमाल की रचनाएं।
    सुबह का अस्तित्व रात में भी शामिल है...शायद इसके गर्भ में।

    उम्दा रचनाएं।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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