Wednesday, 16 December 2020

'अजूबा' किसान

चित्र:मनस्वी

सदियों से एक छवि
बनायी गयी है,
चलचित्र हो या कहानियां
हाथ जोड़े,मरियल, मजबूर
ज़मींदारों की चौखट पर 
मिमयाते,भूख से संघर्षरत
किसानों के रेखाचित्र...
और सहानुभूति जताते दर्शक  
अन्नदाताओं को
बेचारा-सा देखना की
आदत हो गयी है शायद...!!

अपनी खेत का समृद्ध मालिक
पढ़ा-लिखा,जागरूक,
आधुनिक विचारों से युक्त,
जींस पहने, स्मार्ट फोन टपटपाता
मुखरित, बेबाक,
नयी जानकारियों से अप-टू-डेट
किसान नौटंकी क्यों लगता है?

गाँवों से समृद्ध हमारा देश 
 शहर से स्मार्ट शहर में बदला,
 स्मार्ट शहर से
 मेट्रो सिटी के पायदान चढ़ने पर
हम गर्वित हैं,
ग्रहों-उपग्रहों का शतकीय लॉचिंग,
5 जी,हाई स्पीड अंतरजाल
की बातें करते,
आधुनिक ,अत्याधुनिक और
 सुविधासंपन्न
होना उपलब्धि है,
फिर किसान का
काजू-बादाम,पिज्जा खाना
रोटी की मशीन और
टैक्टर से सज्जित,
बड़ी गाड़ियों से आना
अटपटा क्यों लगता है?

समाज का कौन-सा तबका 
सब्सिडी या सरकारी योजनाओं का
लाभ छोड़ देता है? 
बैंक का इंटरेस्ट रेट कम ज्यादा होने पर
सरकार को नहीं गरियाता है?
आयकर कम देना पड़े
अनगिनत तिकड़म नहीं लगाता है? 
अपनी समझ के हिसाब से
संवैधानिक अधिकारों की पीपुड़ी
कौन नहीं बजाता है?

क्रांति,आंदोलन या विद्रोह
सभी प्रकार के संघर्ष 
करने वालों का चेहरा तो
एक समान तना हुआ,
आक्रोशित ही होता है!
हर प्रसंग में
राजनीतिक दखलंदाजी
पक्ष-विपक्ष का खेल
नेताओं ,अभिनेताओं की
मौकापरस्ती
बहती गंगा में डुबकी लगाना
कोई नयी बात तो नहीं...!!

वैचारिकी पेंसिलों को 
अपने-अपने
दल,वाद,पंथ के
रेजमाल पर घिसकर
नुकीला बनाने की कला 
 प्रचलन में है,
सुलेख लिखकर
सर्वश्रेष्ठ अंक पाने की
होड़ में शामिल होने वाले
दोमुँहे बुद्धिजीवियों से
किसी विषय पर
निष्पक्ष मूल्यांकन 
और मार्गदर्शन की आशा
हास्यास्पद है।

तो फिर
 साहेब!!
एक बार
विरोध और समर्थन
पक्ष-विपक्ष का 
चश्मा उतारकर,निष्पक्ष हो
सोचिये न ज़रा...
याचकीय मुद्राओं को त्यागकर
मुनादियों से असहमत
अपने हक़ की बात पर
धरना-प्रदर्शन, विरोध करता 
बरसों से प्रदर्शनी में लगी
अपनी नैराश्य की तस्वीरें
चौराहों से उतारकर
अपनी दयनीय छवियों को
स्वयं तोड़ता,
अपने सपनों को ज़िदा रखने के लिए
अपनी बात ख़ुद फरियाने 
एकजुट हुआ किसान
  'अजूबा'
 क्यों नज़र आता है??

#श्वेता सिन्हा


 

18 comments:

  1. किसानों की स्थिति औऱ उनकी कर्म साधना का बेहद प्रभावपूर्ण चित्रण,
    किसानों के प्रति वर्तमाम में हो रहे अनगढ़ प्रलापों ओर किसानो की जमीन हड़पने की साजिश को खुलासा करती यह रचना,कुंद हो रहे मष्तिष्क को सचेत करेगी
    बेहत भावपूर्ण औऱ कमाल की रचना
    बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका आशीष मिला,
      बहुत-बहुत आभारी हूँ सर।
      सादर प्रणाम।

      Delete
  2. बेहद सोचनीय स्थिति आज भी किसानों की, भले ही आज कितनी भी तरक्की दिखे उनकी
    बहुत अच्छी विचारणीय सामयिक रचना

    ReplyDelete
  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" (1980...सुरमई-सी तैरती मिहिकाएँ...) पर गुरुवार 17 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  4. आपकी बात बिल्कुल ठीक है ।

    ReplyDelete
  5. अत्याधुनिकता की हमारी जो अंधी दौड़ है उसकी चकाचौंध में नजरिया ही अजीब हो गया है । अजीब को तो अजूबा ही नजर आएगा न ।

    ReplyDelete
  6. बरसों से प्रदर्शनी में लगी
    अपनी नैराश्य की तस्वीरें
    चौराहों से उतारकर
    अपनी दयनीय छवियों को
    स्वयं तोड़ता,
    अपने सपनों को ज़िदा रखने के लिए
    अपनी बात ख़ुद फरियाने
    एकजुट हुआ किसान
    'अजूबा'
    क्यों नज़र आता है??
    बहुत सुंदर और सार्थक रचना।

    ReplyDelete
  7. सरगगर्भित एवं समसामयिक कृति..हर पहलू पर छाप छोड़ती हुई..।

    ReplyDelete
  8. बरसों से प्रदर्शनी में लगी
    अपनी नैराश्य की तस्वीरें
    चौराहों से उतारकर
    अपनी दयनीय छवियों को
    स्वयं तोड़ता,
    अपने सपनों को ज़िदा रखने के लिए
    अपनी बात ख़ुद फरियाने
    एकजुट हुआ किसान
    'अजूबा'
    क्यों नज़र आता है ??
    सड़कों पर आन्दोलन कर रहे किसानों की आधुनिकता देख सच में मन भ्रमित तो है...अभी भी कुछ किसान वही पुरानी छवि में तटस्थ बैठे हैं।
    समसामयिक लाजवाब सृजन।

    ReplyDelete
  9. सालों से एक अलग सी छवि का अंतर्जाल टूटा है पर कोई उसे स्वीकारना नहीं चाहता ।
    बहुत शानदार वैचारिक सृजन हर प्रश्न अपने आप में चुभती सलाख सा ।
    यथार्थ सटीक।

    ReplyDelete
  10. गज़ब लिख दिया आपने. सचमुच, किसान को फटेहाल और याचक की तरह देखना कब छोड़ेंगे लोग. सबके अपने अपने पक्ष; परन्तु आम आदमी के लिए निष्पक्ष होकर सोचना जिस सरकार का काम, वही सबसे बड़ा पक्षपात करती है. विचारपूर्ण और सटीक लेखन के लिए बहुत बधाई.

    ReplyDelete
  11. सुन्दर विचारमाला, बिल्कुल यथार्थ चित्रण, साधुवाद

    ReplyDelete
  12. हमारे देश में हर कोई अजूबा लगता है कोई पिज्जा खाता हुआ कोई मक्की खाता हुआ ...
    पर आयोजन प्रायोजन किसका भला करते हैं ये कोई आज तक नहीं जान पाया ...

    ReplyDelete

  13. ry nicely written. it seems 2020 is loosing everything for us. hope the 2021 will come with lots of happiness,, pleasure, success and winnings.

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...