मन पर मढ़ी
ख़्यालों की जिल्द
स्मृतियों की उंगलियों के
छूते ही नयी हो जाती है,
डायरी के पन्नों पर
जहाँ-तहाँ
बेख़्याली में लिखे गये
आधे-पूरे नाम
पढ़-पढ़कर ख़्वाब बुनती
अधपकी नींद,
एहसास की खुशबू से
छटपटायी बेसुध-सी
मतायी तितलियों की तरह
जम चुके झील के
एकांत तट पर
उग आती हैं कंटीली उदासियाँ
सतह के भीतर
तड़पती मछलियों को
प्यास की तृप्ति के लिए
चाहिए ओकभर जल।
तारों की उनींदी
उबासियों से
आसमान का
बुझा-सा लगना,
मछलियों का
बतियाना,
पक्षियों का मौन
होना,
उजाले से चुधियाईं आखों से
अंधेरे में देखने का
अनर्गल प्रयास करना,
बिना माप डिग्री के
अक्षांश-देशांतर के
चुम्बकीय वलय में
अवश
मन की धुरी के
इर्द-गिर्द निरंतर परिक्रमा
करते ग्रहों को निगलते
क्षणिक ग्रहण
की तरह
प्रेम में विस्मृति
भ्रम है।
#श्वेता
शुभ प्रभात..
ReplyDeleteमन पर मढ़ी
ख़्यालों की जिल्द
स्मृतियों की उंगलियों के
छूते ही नयी हो जाती है,
डायरी के पन्नों पर
जहाँ-तहाँ
बेख़्याली में लिखे गये
आधे-पूरे नाम
पढ़-पढ़कर ख़्वाब बुनती
अधपकी नींद,
सादर..
सुन्दर अहसासों से सराबोर सुन्दर कृति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अहसास
ReplyDeleteमन पर मढ़ी
ReplyDeleteख़्यालों की जिल्द
स्मृतियों की उंगलियों के
छूते ही नयी हो जाती है,
डायरी के पन्नों पर
जहाँ-तहाँ
बेख़्याली में लिखे गये
आधे-पूरे नाम
बहुत ही सुंदर अहसासों से सजी रचना,सादर नमन श्वेता जी
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
अभिनव, भावपूर्ण - - सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअद्धभुत लेखन
ReplyDeleteमन पर मढ़ी ख़यालों की जिल्द स्मृतियों की उंगलियों के छूते ही नयी हो जाती है । बिलकुल ठीक कहा श्वेता जी आपने । प्रेम कहाँ विस्मृत होता है ? जिन्हें हम भूलना चाहें, वो अकसर याद आते हैं ।
ReplyDeleteमन की धुरी के
ReplyDeleteइर्द-गिर्द निरंतर परिक्रमा
करते ग्रहों को निगलते
क्षणिक ग्रहण
की तरह
प्रेम में विस्मृति
भ्रम है।
कोमल भावनाओं से ओतप्रोत बहुत सुंदर रचना...
इस भ्रम की शिखा तो जला रही है पर बुझाने का कोई उपाय नहीं है । बेहतरीन लफ्ज़ ।
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक प्रस्तुति के लिए आपको शुभकामनाएं और बधाई। सादर।
ReplyDeleteगहरा एहसास ...
ReplyDeleteकई बार ऐसे बरम बने रहने देना अच्छा होता है ... ये जलता रहता है जलाता रहता है ...
बहुत सधी हुई सुन्दर रचना | नव वर्ष की बहुत बहुत हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteबीते ख़्वाबों का उमड़ घुमड़ के याद आना... आह
ReplyDeleteभ्रम ही तो है सब।
अभूत खूब
मन की धुरी के
ReplyDeleteइर्द-गिर्द निरंतर परिक्रमा
करते ग्रहों को निगलते
क्षणिक ग्रहण
की तरह
प्रेम में विस्मृति
भ्रम है।
बहुत सटीक.... गहन एहसासों से बुनी लाजवाब कृति।