Showing posts with label प्रेम कविता. Show all posts
Showing posts with label प्रेम कविता. Show all posts

Tuesday, 22 December 2020

विस्मृति ...#मन#

मन पर मढ़ी
ख़्यालों की जिल्द
स्मृतियों की उंगलियों के
छूते ही नयी हो जाती है,
डायरी के पन्नों पर 
जहाँ-तहाँ
बेख़्याली में लिखे गये
आधे-पूरे नाम 
पढ़-पढ़कर ख़्वाब बुनती
अधपकी नींद, 
एहसास की खुशबू से
छटपटायी बेसुध-सी
मतायी तितलियों की तरह
 जम चुके झील के 
 एकांत तट पर
उग आती हैं कंटीली उदासियाँ
सतह के भीतर
तड़पती मछलियों को
प्यास की तृप्ति के लिए
चाहिए ओकभर जल।

तारों की उनींदी
उबासियों से
आसमान का
बुझा-सा लगना,
मछलियों का
बतियाना,
पक्षियों का मौन 
होना,
उजाले से चुधियाईं आखों से
अंधेरे में देखने का
अनर्गल प्रयास करना,
बिना माप डिग्री के 
अक्षांश-देशांतर के
चुम्बकीय वलय में
अवश 
मन की धुरी के
इर्द-गिर्द निरंतर परिक्रमा
करते ग्रहों को निगलते 
क्षणिक ग्रहण
की तरह
प्रेम में विस्मृति
भ्रम है।

#श्वेता


Thursday, 16 March 2017

रात भर जागेगा कोई

चाँद को तकते आहें भरते भरते
आज फिर रातभर जागेगा कोई

ख्यालों में गुम चाँदनी में मचलते
दीदारे यार की दुआ माँगेगा कोई

जब जब छुएँगी ये पागल हवाएँ
समेट कर बाहों को बाँधेगा कोई

बादलों के साथ में उड़ते फिरते
सपनीली आँखों से ताकेगा कोई

जुगनू के परों पे रखकर ख्वाहिशें
उम्मीदों के धागों से बाँधेगा कोई

तन्हा सफर में न साथी मिलेगा
यादों को लिए राह साधेगा कोई

      #श्वेता

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...