(१)
सर्द रात
गर्म लिहाफ़ में
कुनमुनाती,
करवट बदलती
छटपटाती नींद
पलकों से बगावत कर
बेख़ौफ़ निकल पड़ती है
कल्पनाओं के गलियारों में,
दबे पाँव
चुपके से खोलते ही
सपनों की सिटकनी
आँगन में
कोहरा ओढ़े चाँद
माथे को चूमकर
मुस्कुराता है
और नींद मचलकर
माँगती है दुआ
काश!!
पीठ पर उग आए
रेशमी पंख
ओर वो उड़कर
चली जाए
क्षितिज के उसपार
जहाँ ख़्वाहिशें
सुकून से सोती हैं...।
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(२)
आसमां की
अंधेरी दीवारों से
टकराकर वापस
लौटती सदाएँ
हँस पडती है
ठंडी हवाओं की चुभन से
जगे सपनें
ओढ़ाकर लिहाफ़
सहलाकर उदास पलकें
समझाते हैं
आधी रात को
साँसों की दस्तक
झींगुर सुन रहे हैं
और बाँट रहे हैं एहसास
मन की भाषा
महसूसने के लिए
हमजुबाँ होना जरुरी तो नहीं
शायद...।
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(३)
झरती है चाँदनी
ठूँठ रात के घुप्प शाखों पर,
बेदर्दी से पत्तों को सोते से झकझोरती
बदतमीज़ हवाओं की
सनसनाहट से
दिल अनायास ही
बड़ी ज़ोर से धुकधुकाया
आँखों से गिरकर
तकिये पर टूटा एक ख़्वाब
आज फिर,
सारी रात
शिउली और चाँद की
रूनझुनी हँसी सुन-सुनकर
भोर होने तक
मुस्कुरायेगा।
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#श्वेता सिन्हा
२३/१/२०२१
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 24 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDelete--
राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 25 जनवरी 2021 को 'शाख़ पर पुष्प-पत्ते इतरा रहे हैं' (चर्चा अंक-3957) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुन्दर भावनाओं से मुग्ध करती रचना - - नमन सह।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रकृति चित्रण।
ReplyDeleteसुंदर बिंब।
सादर
मन की गहराईयों में सुन्दर सजीव कल्पनाओं का चित्रण करती मनोहारी कृति..
ReplyDeleteसुंदर सृजन, श्वेता दी।
ReplyDeleteवाक़ई मन की ज़ुबां महसूसने के लिए हमज़ुबां होना ज़रूरी नहीं । आपकी दोनों ही अभिव्यक्तियां हृदय-विजयिनी हैं श्वेता जी । अभिनंदन ।
ReplyDeleteश्वेता जी, आपकी सारी रचनाओं में भावप्रबलता कूट कूट कर भरी है...बहुत खूब लिखा कि आँखों से गिरकर
ReplyDeleteतकिये पर टूटा एक ख़्वाब
आज फिर,
सारी रात
शिउली और चाँद की
रूनझुनी हँसी सुन-सुनकर
भोर होने तक
मुस्कुरायेगा।...वाह
आँखों से गिरकर
ReplyDeleteतकिये पर टूटा एक ख़्वाब
आज फिर,
सारी रात
शिउली और चाँद की
रूनझुनी हँसी सुन-सुनकर
भोर होने तक
मुस्कुरायेगा।
वाह!!!
अद्भुत बहुत ही मनमोहक लाजवाब सृजन।
चांद और रात..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना..
सादर प्रणाम
आपकी जीवंत रचनाओं पर आज हलचल की ओर से आपको अलंकृत होते देख प्रसन्नता हुई।
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई।
आँखों से गिरकर
ReplyDeleteतकिये पर टूटा एक ख़्वाब
आज फिर,
सारी रात
शिउली और चाँद की
रूनझुनी हँसी सुन-सुनकर
भोर होने तक
मुस्कुरायेगा।...बहुत सुन्दर नाज़ुक सी कविताएं आपकी❤️
मंत्रमुग्ध करतीं प्रकृति और श्वेता जी की कलम..
ReplyDeleteबस पढ़तें ही जा रहे.
शुभकामनाएँ
वाह अति उत्तम
ReplyDeleteआपकी रचनाओं को तो पढ़ा नहीं जाता प्रिय श्वेता, बस महसूस किया जाता है !
ReplyDeleteएक अहसास है ये रूह से महसूस करो....
तीनों शब्द चित्र बेमिसाल हैं प्रिय श्वेता | चित्रात्मकता के सृजन की धनी हो तुम | निशब्द करता है तुम्हारा लेखन |मेरी ढेरों शुभकामनाएं और प्यार तुम्हारे लिए | खूब लिखो और आगे बढो |
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