Saturday, 23 January 2021

चाँद और रात



(१)
र्द रात
गर्म लिहाफ़ में
कुनमुनाती,
करवट बदलती
छटपटाती नींद
पलकों से बगावत कर
बेख़ौफ़ निकल पड़ती है
कल्पनाओं के गलियारों में,
दबे पाँव 
चुपके से खोलते ही
सपनों की सिटकनी
आँगन में 
कोहरा ओढ़े चाँद 
माथे को चूमकर
मुस्कुराता है
और नींद मचलकर
माँगती है दुआ
काश!!
पीठ पर उग आए 
रेशमी पंख 
ओर वो उड़कर
चली जाए
क्षितिज के उसपार 
जहाँ ख़्वाहिशें
सुकून से सोती हैं...।

-------////-----

(२)

समां की 
अंधेरी दीवारों से
टकराकर वापस
लौटती सदाएँ
हँस पडती है
ठंडी हवाओं की चुभन से
जगे सपनें
ओढ़ाकर लिहाफ़
सहलाकर उदास पलकें
समझाते हैं
आधी रात को
 साँसों की दस्तक
झींगुर सुन रहे हैं
और बाँट रहे हैं एहसास
मन की भाषा 
महसूसने के लिए
हमजुबाँ होना जरुरी तो नहीं 
शायद...।

------////-----

(३)
रती है चाँदनी
ठूँठ रात के घुप्प शाखों पर,
बेदर्दी से पत्तों को सोते से झकझोरती
बदतमीज़ हवाओं की 
सनसनाहट से
दिल अनायास ही
बड़ी ज़ोर से धुकधुकाया 
आँखों से गिरकर
तकिये पर टूटा एक ख़्वाब
आज फिर,
सारी रात
शिउली और चाँद की
रूनझुनी हँसी सुन-सुनकर
भोर होने तक 
 मुस्कुरायेगा।
-------
#श्वेता सिन्हा
२३/१/२०२१







19 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज रविवार 24 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर।
    --
    राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।

    ReplyDelete
  4. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 25 जनवरी 2021 को 'शाख़ पर पुष्प-पत्ते इतरा रहे हैं' (चर्चा अंक-3957) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    ReplyDelete
  5. सुन्दर भावनाओं से मुग्ध करती रचना - - नमन सह।

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर प्रकृति चित्रण।
    सुंदर बिंब।
    सादर

    ReplyDelete
  7. मन की गहराईयों में सुन्दर सजीव कल्पनाओं का चित्रण करती मनोहारी कृति..

    ReplyDelete
  8. सुंदर सृजन, श्वेता दी।

    ReplyDelete
  9. वाक़ई मन की ज़ुबां महसूसने के लिए हमज़ुबां होना ज़रूरी नहीं । आपकी दोनों ही अभिव्यक्तियां हृदय-विजयिनी हैं श्वेता जी । अभिनंदन ।

    ReplyDelete
  10. श्वेता जी, आपकी सारी रचनाओं में भावप्रबलता कूट कूट कर भरी है...बहुत खूब ल‍िखा क‍ि आँखों से गिरकर
    तकिये पर टूटा एक ख़्वाब
    आज फिर,
    सारी रात
    शिउली और चाँद की
    रूनझुनी हँसी सुन-सुनकर
    भोर होने तक
    मुस्कुरायेगा।...वाह

    ReplyDelete
  11. आँखों से गिरकर
    तकिये पर टूटा एक ख़्वाब
    आज फिर,
    सारी रात
    शिउली और चाँद की
    रूनझुनी हँसी सुन-सुनकर
    भोर होने तक
    मुस्कुरायेगा।
    वाह!!!
    अद्भुत बहुत ही मनमोहक लाजवाब सृजन।

    ReplyDelete
  12. चांद और रात..

    बहुत सुंदर रचना..
    सादर प्रणाम

    ReplyDelete
  13. आपकी जीवंत रचनाओं पर आज हलचल की ओर से आपको अलंकृत होते देख प्रसन्नता हुई।
    बहुत-बहुत बधाई।

    ReplyDelete
  14. आँखों से गिरकर
    तकिये पर टूटा एक ख़्वाब
    आज फिर,
    सारी रात
    शिउली और चाँद की
    रूनझुनी हँसी सुन-सुनकर
    भोर होने तक
    मुस्कुरायेगा।...बहुत सुन्दर नाज़ुक सी कविताएं आपकी❤️

    ReplyDelete
  15. मंत्रमुग्ध करतीं प्रकृति और श्वेता जी की कलम..
    बस पढ़तें ही जा रहे.
    शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  16. आपकी रचनाओं को तो पढ़ा नहीं जाता प्रिय श्वेता, बस महसूस किया जाता है !
    एक अहसास है ये रूह से महसूस करो....

    ReplyDelete
  17. तीनों शब्द चित्र बेमिसाल हैं प्रिय श्वेता | चित्रात्मकता के सृजन की धनी हो तुम | निशब्द करता है तुम्हारा लेखन |मेरी ढेरों शुभकामनाएं और प्यार तुम्हारे लिए | खूब लिखो और आगे बढो |

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...