कवि की आँखों की चौहद्दी
सुंदर उपमाओं और रूपकों से सजी रहती है
बेलमुंडे जंगलों के रूदन में
कोयल की कूक,
तन-मन झुलसाकर ख़ाक करती गर्मियों में
बादलों की अठखेलियाँ गिनते है
फूल काँटों संग झूमते हैं
भँवरे तितलियों संग ताल मिलाते हैं
गेहूँ और धान की बालियों से
हरे-भरे लहलहाते खेत
गाते किसान,
हँसते बच्चे,
खिलखिलाती स्त्रियाँ,
सभी की खुशियों की
दुआ माँगते संत और पीर
प्रार्थनाओं और मन्नतों के
धागों में पिरोये भाईचारे,
कवि की कूची
इंद्रधनुषी रंगों से
प्रकृति और प्रेम की
सकारात्मक ,सुंदर ,ऊर्जावान शब्दों की
सुगढ़ कलाकारी करती हैं
ख़ुरदुरी कल्पनाओं में
रंग भरकर
सभ्यताओं के दीवार पर
नक्काशी करती हैं...
जिन कवियों को
नहीं होती राजनीति की समझ
उनके सपनों में
रोज आती हैं जादुई परियाँ
जो जीवन की विद्रुपताओं को छूकर
सुख और आनन्द में
बदलने दिलासा देती रहती हैं...।
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# श्वेता सिन्हा
कवि के रचना संसार का मनमोहक चित्रण किया है आपने श्वेता जी !
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteगहराई से किया गया चिंतन
आभार
हा हा सारे कवियों को होती है राजनीतिक समझ | व्यक्त सब नहीं करते हैं सपनों के आढे आ जाते हैं :) सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteअनुपम
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह! क्या बात है। कवि की कभी काल्पनिक तो कभी सांसारिक दुनिया, सुंदर चित्रण।
ReplyDeleteशब्दों की सुंदर बुनावट। कवि इसे महसूस कर सकते हैं जो आपने लिखा।
ReplyDeleteपता है श्वेता, आज जब पाँच लिंकों की ये दूसरी लिंक खोली, तब मालूम नहीं था कि किस रचनाकार की है। ब्लॉग का नाम भी नहीं देखा और स्क्रॉल करके सीधे कविता पर आई। आदत भी यही है, बहुत जल्दबाज हूँ 😀। चंद पंक्तियाँ पढ़ते ही तुम्हारी याद आई और अंत में देखा -
श्वेता सिन्हा !
ये आपकी रचनाओं का विशेष प्रभाव है। बहुत सारा प्यार !