देश-दुनिया भर की
व्यथित,भयाक्रांत
विचारणीय,चर्चित
ख़बरों से बेखबर
समाज की दुर्घटनाओं
अमानवीयता,बर्बरता
से सने मानवीय मूल्यों
को दरकिनार कर,
द्वेष,घृणा,ईष्या की
ज्वाला में जलते
पीड़ित मन की
पुकार अनसुना कर
मोड़कर रख देते हैं अख़बार,
बदल देते हैं चैनल...,
फिर, कुछ ही देर में वैचारिकी
प्रवाह की दिशा बदल जाती है....।
हम यथार्थवादी,
अपना घर,अपना परिवार,
अपने बच्चों की छोटी-बड़ी
उलझनों,खुशियों,जरूरतों और
मुसकानों में पा लेते हैं
सारे जहाँ का स्वार्गिक सुख
हमारी प्राथमिकताएँ ही तय
करती है हमारी संवेदनाओं
का स्तर
क़लम की नोंक रगड़ने से
हमारे स्याही लीपने-पोतने से
बड़े वक्तव्यों से
आक्रोश,उत्तेजना,अफ़सोस
या संवेदना की भाव-भंगिमा से
नहीं बदला जा सकता है
किसी का जीवन
किसी का जीवन
बस दर्ज हो जाती है औपचारिकता।
हाँ, पर प्रेम....।
स्वयं से,अपनों से,समाज से
देश से,प्रकृति से,जीवन से
भरपूर करते हैं
क्योंकि हम जानते हैं
हमारी प्रेम भरी भावनाओं का
कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा..,
देश-दुनिया के
वाद-विवाद,संवाद और
राजनीतिक तापमान पर...।
#श्वेता सिन्हा
नोटः अर्चना कुमारी की एक रचना से प्रेरित। सादर