सुरमई रात के उदास चेहरे पर
कजरारे आसमां की आँखों से
टपकती है लड़ियाँ बूँदों की
झरोखे पे दस्तक देकर
जगाती है रात के तीसरे पहर
मिचमिचाती पीली रोशनी में
थिकरती बरखा घुँघरू-सी
सुनसान राहों से लगे किनारों पे
हलचल मचाती है बहती नहर
बुलाती है रात के तीसरे पहर
पीपल में दुबके होगे परिंदें
कैसे रहते होगे तिनकों के घर में
खामोश दरख्तों के बाहों में सिकुड़े
अलसाये है या डरे,पूछने खबर
उकसाती है रात के तीसरे पहर
झोंका पवन का ले आया नमी
उलझ रहा जुल्फों में सताये बैरी
छूकर चेहरा सिहराये बदन
पूछता हाल दिल का रह-रह के
सिलवट,करवट,बेचैन,बसर,
कुहकाती है रात के तीसरे पहर
#श्वेता सिन्हा