सृष्टि के सृजन का अधिकार
प्रभु रूप सम एक अवतार
नारी हूँ मैं धरा पर बिखराती
कण कण में खुशबू, सुंगध बहार,
आदर्श और नियमोंं के जंजीरों में
पंख बाँधे गये घर की चौखट से
अपनों की खुशियों को रोपती हूँ
हर दिन तलाशती अपना आधार
हर युग में परीक्षा मेरे अस्तित्व की है
सीता मैं राम की,अग्नि स्नान किया
द्रौपदी मैं,बँटी वस्तु सम पाँच पुरुष में
मैं सावित्री यम से ले आयी पति प्राण,
शक्ति स्वरूपा असुर निकंदनी मैं माता
मंदोदरी, अहिल्या तारा सती विख्याता
कली, पुष्प ,बीज मैं ही रूप रंग श्रृंगार
मेरे बिन इस जग की कल्पना निराधार,
मैं भोग्या वस्तु नही, खिलौना नहींं
मैं मुस्काती,धड़कती जीवन श्वाास हूँ
साँस लेने दो,उड़ने को नभ दो मुझे
नारी हूँ मैं चाहती जीने का सम आधार,
न पूजो मुझे बस नवरात्रों में ही
रखकर मान हृदय में स्थान दो
मसल कर रख दोगे नन्ही कली गर
कैसे रचा पाऊँगी मैं सुंदर संसार।