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Tuesday 30 July 2019

मुर्दों के शहर में


सुनो! अब मोमबत्तियाँ मत जलाओ
हुजूम लेकर चौराहों को मत जगाओ
नारेबाज़ी झूठे आँसुओं की श्रंद्धाजलि
इंसाफ़ के नाम पर मज़ाक मत बनाओ

जिस्म औरत का प्रकृति प्रदत्त शाप है 
भोगने की लालसा खदबदाता भाप है
रौंदकर उभारों को,मार करके आत्मा
छद्म नाम की सुर्खियाँ तुम मत सजाओ

सजाकर मंदिरों में शक्ति का वरदान क्यों?
अपनी माँ,बेटी और बहन को ही मान क्यों?
औरत महज जिस्म है पापी दुष्ट भेड़ियों
ओ पशुओं मनुष्य का चेहरा मत लगाओ

बिकाऊ सूचना तंत्र का उच्च टीआर पी
राजनीति का फायदेमंद मूल एमआरपी 
सुविधानुसार इस्तेमाल होती  विज्ञापन
नोंच,खसोट,मौत का मातम मत मनाओ

कौन करेगा आत्मा के बलात्कार का इंसाफ़?
रौंदे गये तन-मन से मवाद रिस रहे बेहिसाब
अंधों की दरिंदगी बहरों की सियासत है
मुर्दों के शहर में ज़िंदगी की पुकार मत लगाओ

#श्वेता सिन्हा

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...