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Friday, 8 December 2017

हाँ मैं ख़्वाब लिखती हूँ


हाँ,मैं ख़्वाब लिखती हूँ
अंतर्मन के परतों में दबे
भावों की तुलिका के
नोकों से रंग बिखेरकर
शब्द देकर 
मन के छिपे उद्गगार को
मैं स्वप्नों के महीन जाल
लिखती हूँ।

श्वेत श्याम भावों के
स्याह-उजले रंग से 
पोते गये हृदय के
रंगहीन दीवारों पर
सजाकर चटकीले रंगों को
बनाये गये 'मुखौटे'के भीतर कैद
उन्मुक्त आकाश की उड़ान,
ललचाई आँखों से 
चिडि़यों के खुले पंख देखती
आँखों के सारे 
मैं राज़ लिखती हूँ।

शून्य में तैरते बादलों के परों से
चाँद के पथरीले जमीं पर
चाँदनी के वरक लगाकर
आकाशगंगा की गहराई में उतर
झुरमुटों के जुगनू के जाले देखती
मौन पेड़ों से बतियाते 
चकोर की व्यथा की दर्द भरी
मैं तान लिखती हूँ।

यथार्थ की धरातल पर खड़ी
पत्थरों की इमारतों के
सीने में मशीन बने 
स्पंदनहीन इंसानों के 
अंतर के छुपे मनोभावों के
बूँद-बूँद कतरों को
एहसास की मोतियों में पिरोकर
मैं अनकहा हाल लिखती हूँ।

चटख कलियों की पलकों की
लुभावनी मुस्कान 
वादियों के सीने से लिपटी 
पर्वतशिख के हिमशिला में दबी
धड़कते सीने के शरारे से
पिघलती निर्मल निर्झरी
हर दिल का पैगाम सुनती हूँ
हाँ,मैं ख्वाब लिखती हूँ।

#श्वेता🍁


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