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Monday, 2 September 2019

स्त्री..व्रत


सारा अंतरिक्ष नापकर 
मंगल और चंद्र की माटी जाँचकर
स्त्रियों के लिए 
रेखांकित सीमाओं को
मिटाने के लिए
सतत प्रयासरत
इंटरनेट क्रांति के युग में
फेसबुक,ट्विटर पर
परिमार्जित किये गये
स्त्री के रुप
विचारों में कम
शब्दों में ज्यादा
परंपरागत,पोंगापंथी,ढकोसला 
जैसे शब्दों की आहुति देकर
"आधुनिका"के
शाब्दिक ओज से गर्विता
सभी वर्जनाओं को तोड़कर 
स्त्री स्वतंत्रता की गढी गयी परिभाषाएँ,
पुरुषों के समकक्ष खड़ी स्त्री
माँ-दादी-नानी,बुआ-चाची
भाभी-ताई के द्वारा डाली गयी
खादभरी माटी में
मन के जड़ में रोपी गयी
संस्कार,परंपराओं की
बीज से पनपी बेलों से
एक आध डाली या 
कुछ पत्तियाँ
तोड़कर भले ही फेंक दे
पर जड़ से इतर पुष्पित
कैसे हो सकती है?
एक स्त्री के लिए
व्रत,उपवास मात्र 
औपचारिकता नहीं
पति मात्र एक चुटकी सिंदूर नहीं होता
संपूर्ण जीवन को जीने का
एक कारण होता है
अपने दैनिक जीवन में
आधुनिक सारे तर्क को
मन से परे हटाकर 
जानती है कि उसके 
माँग में सिंदूर भरने या 
या व्रत करने से
पति की उम्र का कोई लेना-देना नहीं....
पर वो जानती है
अपने सच्चे मन से की गयी
प्रार्थना की अलौकिक अनुभूति को
अपने मन के प्रेम की शक्ति को,
निर्जल रहकर, करती है सजल 
भाव से मनौतियाँ
बाँधती है मौली के कच्चे धागों में
अधपके,अधूरे स्वप्न,
काल के अनदेखे पहियों पर,
एकाग्रचित अपने साँस में जपती
अपने आशाओं और सुख की माला
तिरोहित कर बराबरी का अधिकार
आत्मा से साक्षात्कार करती
जीवन के गूढ़ गाँठों को सुलझाती
अपने समर्पित प्रेम की ज्योति से 
दिपदिपाना चाहती है 
अपने मन के पुरुष के साथ आजीवन।

#श्वेता सिन्हा



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