गहराते रात के साये में
सुबह से दौड़ता-भागता शहर
थककर सुस्त क़दमों से चलने लगा
जलती-बुझती तेज़ -फीकी
दूधिया-पीली रोशनी के
जगमगाते-टिमटिमाते
असंख्य सितारे
ऊँची अट्टालिकाओं से झाँकते
निर्निमेष ताकते हैं राहों को
सड़कों पर दौड़ती मशीनी
ज़िंन्दगी
लौटते अपने घरौंदे को
बोझिलता का लबादा पहने
सर्द रात की हल्की धुंध में
कंपकंपाती हथेलियों को
रगड़ते रह-रहकर
मोड़कर कुहनियों को
मुट्ठी बाँधते जैकेट में
गरमाहट ढूँढ़ते
बस की खिड़की से बाहर
स्याह आसमां की
कहकशाँ निहारते
पूरे चाँद को जब देखता हूँ
तुम्हारा ख़्याल अक्सर
हावी हो जाता है
तुम्हारी बातें
घुलने लगती हैं
संदली ख़ुशबू-सी
सिहरती हवाओं
के साथ मिलकर
गुनगुनाने लगती हैं
जानता हूँ मैं
तुम भी ठंड़ी छत की
नम मुँडेरों पर खड़ी
उनींदी आँखों से
देखती होओगी चाँद को
एक चाँद ही तो है
जिसे तुम्हारी आँखें छूकर
भेजती हैं एहसास
जो लिपट जाते हैं मुझसे
आकर बेधड़क,
और छोड़ जाते हैं
गहरे निशां
तुम्हारी रेशमी यादों के ।
#श्वेता🍁