Thursday, 5 November 2020
Saturday, 31 October 2020
सोचती हूँ...
२७ जून २०१८ को आकाशवाणी जमशेदपुर के कार्यक्रम सुवर्ण रेखा में पहली बार एकल काव्य पाठ प्रसारित की गयी थी। जिसकी रिकार्डिंग २२ जून २०१८ को की गयी थी।
बहुत रोमांचक और सुखद अवसर था। अति उत्साहित महसूस कर रही थी,
मानो कुछ बहुमूल्य प्राप्त हो गया हो
उसी कार्यक्रम में मेरे द्वारा पढ़ी गयी
एक कविता
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सोचती हूँ..
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बित्तेभर विचारों का पुलिंदा और
एक पुलकती क़लम लेकर
सोचने लगी थी
लिखकर पन्नों पर
क्रांति ला सकती हूँ युगान्तकारी
पलट सकती हूँ
मनुष्य के मन के भाव
प्रकृति को प्रेमी-सा आलिंगन कर
जगा सकती हूँ
बोझिल हवा,
सिसकते फूल,
घायल वन,
दुहाते पहाड़ों और
रोती नदियों के प्रति संवेदना
पर,
सहृदयताओं की कविताएँ लिखने पर भी तो
न मिटा सकी मैं
निर्धन की भूख
अशिक्षा का अंधकार
मनुष्य की पाश्विकता
मन की अज्ञानता
ईष्या-द्वेष,लोलुपता
नारियों का अभिशाप
हाँ शायद...
कविताओं को पढ़ने से
परिवर्तित नहीं होता अंतर्मन
विचारों का अभेद्य कवच
कुछ पल शब्दों के
ओज से प्रकाशित होती है
विचारों की दीप्ति
चंद्रमा की तरह
सूर्य की उधार ली गयी रोशनी-सी
फिर आहिस्ता-आहिस्ता
घटकर लुप्त हो जाती है
अमावस की तरह
सोचती हूँ...
श्वेत पन्नों को काले रंगना छोड़
फेंक कर कलम थामनी होगी मशाल
जलानी होगी आस की आग
जिसके प्रकाश में
मिटा सकूँ नाउम्मीदी और
कुरीतियों के अंधकार
काट सकूँ बेड़ियाँ
साम्प्रदायिकता की साँकल में
जकड़ी असहाय समाज की
लौटा पाऊँ मुस्कान
रोते-बिलखते बचपन को
काश!मैं ला पाऊँ सूरज को
खींचकर आसमां से
और भर सकूँ मुट्ठीभर उजाला
धरा के किसी स्याह कोने में।
--श्वेता सिन्हा
Saturday, 18 July 2020
तुम्हारे जन्मदिन पर
मैं नहीं सुनाना चाहती तुम्हें
दादी-नानी ,पुरखिन या समकालीन
स्त्रियों की कुंठाओं की कहानियां,
गर्भ में मार डाली गयी
भ्रूणों की सिसकियाँ
स्त्रियों के प्रति असम्मानजनक व्यवहार
समाज के दृष्टिकोण में
स्त्री-पुरूष का तुलनात्मक
मापदंड।
मैं नहीं भरना चाहती
तुम्हारे हृदय में
जाति,धर्म का पाखंड
आडंबरयुक्त परंपराओं की
कलुषिता
घृणा,द्वेष,ईष्या जैसे
मानवीय अवगुण
एवं अन्य
सामाजिक विद्रूपताएं।
मैं बाँधना चाहती हूँ तुम्हारी
नाजुक उम्र की सपनीली
ओढ़नी में...
अंधेरे के कोर पर
मुस्काती भोर की सुनहरी
किरणों का गुच्छा,
सुवासित हवाओं का झकोरा,
कुछ खूशबू से भरे फूलों के बाग
नभ का सबसे सुरक्षित टुकड़ा,
बादलों एवं सघन पेड़ों की छाँव,
चिड़ियों की मासूम,
बेपरवाह किलकारियाँ,
मुट्ठीभर सितारे,
सकोरा भर चाँदनी,
चाँद का सिरहाना,
सारंगी की धुन में झूमते
थार के ऊँट और
बाँधनी के खिले रंग,
समुंदर की लहरों का संयम
शंख और सीपियाँ
प्रकृति के शाश्वत उपहारों
से रंगना चाहती हूँ
तुम्हारे कच्चे सपनों के कोरे पृष्ठ
ताकि तुम्हारा कोमल हृदय
बिना आघात समझ सके
जीवन सुंदरता,कोमलता और
विस्मयकारी विसंगतियों से युक्त
गूढ़ जटिलताओं का मिश्रण है।
भौतिक सुख-सुविधाओं से
समृद्ध कर तुम्हें
सुखद कल्पनाओं का हिंडोला
दे तो सकती हूँ
किंतु मैं देना चाहती हूँ
सामान्य व्यवहारिक प्रश्न पत्र
जिसे सुलझाते समय
तुम जान सको
रिश्तों का गझिन गणित
यथार्थ के मेल
की रासायनिक प्रतिक्रियाएँ
की रासायनिक प्रतिक्रियाएँ
भावनाओं का भौतिकीय परिवर्तन
स्नेह के काव्यात्मक छंद
तर्क के आधार पर
विकसित कर सको
सारे अनुभव जो तुम्हारी
क्षमताओं को सुदृढ कर
संघर्षों से जूझने के
योग्य बनाये।
सुनो बिटुआ,
सदैव की तरह
आज भी मैं दे न पायी तुम्हें
तुम्हारे जन्मदिन पर
कोई भी ऐसा उपहार
जो मेरा हृदय संतोष से भर सके
किंतु मुझे विश्वास है मैंने जो
बीज रोपे हैं तुम्हारे मन की
उर्वर क्यारी में उसपर
फूटेंग मानवीय गुणों के
पराग से लिपटे
फूटेंग मानवीय गुणों के
पराग से लिपटे
सुवासित पुष्प,
मेरे आशीष
मेरे अंतर्मन की
मेरे अंतर्मन की
शुभ प्रार्थनाओं और
कर्म की ज्योति
प्रतिबिंबित होकर
पथ-प्रदर्शक बनकर
आजीवन तुम्हारे
साथ रहेंगे।
©श्वेता सिन्हा
१८जुलाई२०२०
Wednesday, 15 July 2020
नैतिकता
उज्जवल चरित्र उदाहरणार्थ
जिन्हें लगाया गया था
सजावटी पुतलों की भाँति
पारदर्शी दीवारों के भीतर
लोगों के संपर्क से दूर
प्रदर्शनी में
पुरखों की बेशकीमती धरोहर की तरह,
ताकि ,विश्वास और श्रद्धा से नत रहे शीश,
किंतु सत्य की आँच से
दरके भारी शीशों से
बड़े-बड़े बुलबुले स्वार्थपरता के
ईमान के लचीलेपन पर
अट्टहास कर
कर्म की दुर्बलता का
प्रमाण देने लगे।
असंतोष और विरोध,
प्रश्नों के बौछारों से
बौखलाकर,
आँखों से दूर सँकरे कोने में
स्थानांतरित कर दी गयी
चौराहे पर लगी
शिकायत पेटी
और...
और...
एक हवन कुंड बना दिया गया
लोककल्याणकारी
पवित्र यज्ञ का हवाला देकर
आह्वान कर
सुखद स्वप्नों के
कुछ तर्कशील मंत्र पढ़े गये
किंतु
नवीन कुछ नहीं था
समिधाएँ बनी एक बार फिर
नैतिकता।
चुपचाप रहकर
अपने मंतव्यों के पतंग
कल्पनाओं के आसमान में ही
उड़ाना सुरक्षित है,
मनोनुकूल परिस्थितियाँ
बताने वाली
समयानुकूल घड़ियाँ
प्रचलन में हैं आजकल
चुप्पियों की मुर्दा कलाईयों में
बँधी सूईयों की टिक-टिक
ईनाम है
निर्वासित आत्मा की
समझदार देह के लिए।
#श्वेता सिन्हा
१५ जुलाई२०२०
१५ जुलाई२०२०
Sunday, 12 July 2020
शांति
विश्व की प्राचीन
एवं आधुनिक सभ्यताओं,
पुरातन एवं नवीन धर्मग्रंथों में,
पिछले हज़ारों वर्षों के
इतिहास की किताबों में,
पिरामिड,मीनारों,कब्रों,
पुरातात्त्विक अवशेषों
के साक्ष्यों में,
मानवता और धर्म की
स्थापना के लिए,
कभी वर्चस्व और
अनाधिकार आधिपत्य की
क्षुधा तृप्ति के लिए,
किये गये संहार एवं
युद्धों के विवरण से रंगे
रक्तिम पृष्ठों में
श्लोको, ऋचाओं,
प्रेरणादायक उद्धरणों
उपदेशों के सार में
जहाँ भी शांति
का उल्लेख था
लगा दिया गया
'बुकमार्क'
ताकि शांति की महत्ता की
अमृत सूक्तियाँ
आत्मसात कर सके पीढ़ियाँ।
किंतु,
वीर,पराक्रमी और
शौर्यवान देवतुल्य
विजेताओं का महिमामंडन
हिंसा-प्रतिहिंसा की कहानियाँ
प्रेम और शांति से ज्यादा आप्लावित हुई।
दुनियाभर के महानायकों के
ओजस्वी विचारों में
सम्मोहक कल्पनाओं में
'शांति' का अनुवाद
अपनी भाषा और
अपने शब्दों में परिभाषित
करने का प्रयास,
कर्म में स्थान न देकर
दैवीय और पूजनीय कहकर
यथार्थ जीवन से अदृश्य कर दिया गया।
अलौकिक रूप से विद्यमान
प्रकृति के सार तत्वों की तरह
शांति शब्द
सत्ताधीशों के समृद्ध शब्दकोश में
'हाइलाइटर' की तरह है
जिसका प्रयोग समय-समय पर
बौद्धिक समीकरणों में
उत्प्रेरक की तरह
किया जाता है अब।
©श्वेता सिन्हा
१२ जुलाई २०२०
Thursday, 9 July 2020
बुद्धिजीवी
चित्र:मनस्वी
मृदुल मुस्कान और
विद्रूप अट्टहास का
अर्थ और फ़र्क़ जानते हैं
किंतु
जिह्वा को टेढ़ाकर
शब्दों को उबलने के
तापमान पर रखना
जरूरी है।
हृदय की वाहिनियों में
बहते उदारता और प्रेम
की तरंगों को
तनी हुई भृकुटियों
और क्रोध से
सिकुड़ी मांसपेशियों ने
सोख लिया हैं।
ठहाके लगाना
क्षुद्रता है और
गंभीरता;
वैचारिक गहनता का मीटर,
वे जागरूक
बुद्धिजीवी हैं!
वे जागरूक
बुद्धिजीवी हैं!
उनमें योग्यता है कि
वे हो जाये उदाहरण,
प्रणेता और अनुकरणीय
क्योंकि वे अपने दृष्टिकोण
की परिभाषाओं के
जटिल एवं तर्कपूर्ण
चरित्र में उलझाकर
शाब्दिक आवरण से
मनोभावों को
कुशलता से ढँकने का
हुनर जानते हैं।
विवश हैं ...
चाहकर भी
विवश हैं ...
चाहकर भी
गा नहीं सकते प्रेम गीत,
अपने द्वारा रचे गये
आभा-मंडल के
वलय से बाहर निकलने पर
निस्तेज हो जाने से
भयभीत भी शायद...।
भयभीत भी शायद...।
#श्वेता सिन्हा
९जुलाई २०२०
Monday, 6 July 2020
साधारण होना...
रोटी-दाल,
चावल-सब्जी से इतर
थाली में परोसी गयी
पनीर या खीर देख
खुश हो जाना,
बहुत साधारण बात होती है शायद...
भरपेट मनपसंद भोजन और
आरामदायक बिस्तर पर
चैन से रातभर सो पाने की इच्छा।
जो मिला जीवन में
कुछ शिकायतों के साथ
नियति मानकर स्वीकार करना
बिना फेर-बदल किये
रस्मों रिवाजों,परंपराओं में,
ढर्रे को सहजता से अपनाना
चंद साधारण सपने देखना।
भीड़ का गुमनाम चेहरा,
एक मौन भीड़,
भेड़-बकरी के झुंड की तरह
किसी चरवाहे के इशारे पर
सर झुकाये पगडंडियों की
धूल उड़ाना और बिना प्रतिकार किये
बेबस,निरीह मानकर
स्वयं अपने कंठ में बँधी
रस्सी का सिरा किसी
असाधारण के हाथ थमा देना।
जन्म से मृत्यु तक की
बेआवाज़ यात्रा
करने वाले बेनाम,
जिन्हें धिक्कारा गया
साधारण मनुष्य कहकर,
जो प्रेम और सुख की लालसा में
जी लेते हैं पूरा जीवन।
सोचती हूँ...
क्यों निर्रथक लगता है
साधारण होना...
इतिहास में दर्ज़ सभ्यताओं के
अति विशिष्ट योद्धाओं,विद्रोहियों
असाधारण मनुष्यों के अवशेष
गवाह हैं
सृष्टि ने जीवों की रचना
कालजयी होने के लिए नहीं की
क्या सचमुच फ़र्क पड़ता है
साधारण, विशिष्ट या अतिविशिष्ट
होने से...
सभी तो जन्म लेते हैं
देह में कफ़न लपेटे।
#श्वेता सिन्हा
६ जुलाई २०२०
Thursday, 2 July 2020
नमक का अनुपात
वे पूछते हैं बात-बात पर
क्या आपके खून में
देशभक्ति का नमक है?
प्रमाण दीजिए, मात्रा बताइये
नमक का अनुपात कितना है?
एकदम ठंडा है जनाब
खौलता क्यों नहीं कहिये न
आपके रक्त का ताप कितना है?
बारूद की गंध सूँघाते हैं
करते तोप और टैंकों की गणना
सैन्य क्षमता का आकलन
सनसनी रचते समाचारों की,
जादुई पिटारे से निकालकर
युद्ध का जिन्न दिखा-दिखाकर पूछते हैं
आपमें साहस का नाप कितना है?
विदेशी मसालों के तड़के से
देशी खिचड़ी में स्वाद का प्रयास
तू-तू,मैं-मैं उठा-पटक
कयास अतिशयोक्ति,विश्लेषण
बेमतलब बहसों का अतिशय शोर
दलों के समर्थन या विरोध से ही
बेझिझक झट से बतला देते हैं
आपके देशभक्ति का माप कितना है...!!
देश के जिम्मेदार ख़बरनवीस
वकील संवेदनशील मुकदमों के
स्वयं ही महामहिम न्यायाधीश
तत्ववेत्ता, गड़े मुर्दों के विशेषज्ञ
जीवित मुद्दों के असली मर्मज्ञ
सर्वगुणसम्पन्न पूजनीय सर्वज्ञ
प्रश्नों के लच्छे में उलझाने वालों
मेरा भी है आपसे एक प्रश्न
आपकी व्यापारिक कर्त्तव्यनिष्ठता और
आपकी अंतर्रात्मा में तुलनात्मक
दाब कितना है?
©श्वेता सिन्हा
२जुलाई २०२०
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मैं से मोक्ष...बुद्ध
मैं नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता मेरा हृदयपरिवर...