Saturday 29 July 2017
Friday 28 July 2017
आँखें
तुम हो मेरे बता गयी आँखें
चुप रहके भी जता गयी आँखें
छू गयी किस मासूम अदा से
मोम बना पिघला गयी आँखें
मोम बना पिघला गयी आँखें
रात के ख्वाब से हासिल लाली
लब पे बिखर लजा गयी आँखें
लब पे बिखर लजा गयी आँखें
बोल चुभे जब काँटे बनके
गम़ में डूबी नहा गयी आँखें
गम़ में डूबी नहा गयी आँखें
पढ़ एहसास की सारी चिट्ठियाँ
मन ही मन बौरा गयी आँखें
मन ही मन बौरा गयी आँखें
कुछ न भाये तुम बिन साजन
कैसा रोग लगा गयी आँखें
कैसा रोग लगा गयी आँखें
#श्वेता🍁
*चित्र साभार गूगल*
Wednesday 26 July 2017
क्षणिकाएँ
प्यास
नहीं मिटती
बारिश में गाँव के गाँव
बह रहे
तड़प रहे लोग दो बूँद
पानी के लिए।
★★★★★★★★★★★
सूखा
कहाँ शहर भर गया
लबालब
पेट जल रहे है झोपड़ी में
आँत सिकुड़ गये
गीली जीभ फेर कर
पपड़ी होठों की तर कर रहे है।
★★★★★★★★★★★★
सपने
रतजगे करते है
सीले बिस्तर में दुबके
जब भी नींद से पलकें झपकती है
रोटी के निवाले मुँह तक
आने के पहले
अक्सर भोर हो जाती है।
★★★★★★★★★★★★★
बोझ
जीवन के अंतिम पड़ाव में
एहसास होता है
काँधे पर लादकर चलते रहे
ज़माने को बेवजह
मन की गठरी यूँ ही
वजनदार हो गयी।
★★★★★★★★★★★★★★
जीवन
बह रहा वक्त की धार पर अनवरत
भीतर ही भीतर छीलता तटों को
मौन , निर्विकार , अविराम
छोड़कर सारे गाद किनारे पर
अनंत सागर के बाहुपाश में
विलीन होने को।
#श्वेता🍁
Tuesday 25 July 2017
सावन-हायकु
छेड़ने राग
बूँदों से बहकाने
आया सावन
बूँदों से बहकाने
आया सावन
खिली कलियाँ
खुशबु हवाओं की
बताने लगी
खुशबु हवाओं की
बताने लगी
मेंहदी रचे
महके तन मन
मदमाये है
महके तन मन
मदमाये है
हरी चुड़ियाँ
खनकी कलाई में
पी मन भाए
खनकी कलाई में
पी मन भाए
धानी चुनरी
सरकी रे सर से
कैसे सँभालूँ
सरकी रे सर से
कैसे सँभालूँ
झूला लगाओ
पीपल की डार पे
सखियों आओ
पीपल की डार पे
सखियों आओ
लजीली आँखें
झुक झुक जाये रे
धड़के जिया
झुक झुक जाये रे
धड़के जिया
मौन अधर
मंद मुस्काये सुन
तेरी बतिया
मंद मुस्काये सुन
तेरी बतिया
छुपके ताके
पलकों की ओट से
तोरी अँखियाँ
पलकों की ओट से
तोरी अँखियाँ
संग भीग ले
रिम झिम सावन
बीत न जाए
रिम झिम सावन
बीत न जाए
Monday 24 July 2017
बिन तेरे सावन
जाओ न
सताओ
न बरसाओ फुहार
साजन बिन
क्या सावन
बरखा बहार
पर्वतों को
छुपाकर
आँचल में अपने
अंबर से
धरा तक
बादल बने कहार
पिया पिया बोले
हिय बेकल हो डोले
मन पपीहरा
तुमको बुलाये बार बार
भीगे पवन झकोरे
छू छू के मुस्काये
बिन तेरे
मौसम का
चढ़ता नहीं खुमार
सीले मन
आँगन में
सूखे नयना मोरे
टाँक दी पलकें
दरवाजे पे
है तेरा इंतज़ार
बाबरे मन की
ठंडी साँसें
सुलगे गीली लड़की
धुँआ धुँआ
जले करेजा
कैसे आये करार
#श्वेता🍁
*चित्र साभार गूगल*
Saturday 22 July 2017
धूप की कतरनें
छलछलाए आसमां की आँखों से
बरसती बैचेन बूँदें
देने लगी मन की खिड़की पर दस्तक
कस कर बंद कर ली ,फिर भी,
डूबने लगी भीतर ही भीतर पलकें,
धुँधलाने लगे दृश्य पटल
हृदय के चौखट पर बनी अल्पना में
मिल गयी रंगहीन बूँदे,
भर आये मन लबालब
नेह सरित तट तोड़ कर लगी मचलने,
मौन के अधरों की सिसकियाँ
शब्दों के वीरान गलियारे में फिसले,
भावों के तेज झकोरे से
छटपटा कर खुली स्मृतियों के पिटारे,
झिलमिलाती बूँदों मे
बहने लगी गीली हवाओं की साँसे,
अनकहे सारे एहसास
दुलराकर नरम बाहों से आ लिपटे,
सलेटी बादलों के छाँव में
बड़ी दूर तक पसरे नहीं गुजरते लम्हें,
बारिश से पसीजते पल
ढ़ूँढ रहे चंद टुकड़े धूप की कतरनें।
#श्वेता🍁
बरसती बैचेन बूँदें
देने लगी मन की खिड़की पर दस्तक
कस कर बंद कर ली ,फिर भी,
डूबने लगी भीतर ही भीतर पलकें,
धुँधलाने लगे दृश्य पटल
हृदय के चौखट पर बनी अल्पना में
मिल गयी रंगहीन बूँदे,
भर आये मन लबालब
नेह सरित तट तोड़ कर लगी मचलने,
मौन के अधरों की सिसकियाँ
शब्दों के वीरान गलियारे में फिसले,
भावों के तेज झकोरे से
छटपटा कर खुली स्मृतियों के पिटारे,
झिलमिलाती बूँदों मे
बहने लगी गीली हवाओं की साँसे,
अनकहे सारे एहसास
दुलराकर नरम बाहों से आ लिपटे,
सलेटी बादलों के छाँव में
बड़ी दूर तक पसरे नहीं गुजरते लम्हें,
बारिश से पसीजते पल
ढ़ूँढ रहे चंद टुकड़े धूप की कतरनें।
#श्वेता🍁
Friday 21 July 2017
आहटें
दिन के माथे पर बिखर गयी साँझ की लटें
स्याह आसमां के चेहरे से नज़रे ही न हटें
रात के परों पे उड़ती तितलियाँ जुगनू की
अलसाता चाँद बादलों में लेने लगा करवटें
फिसलती चाँदनी हँसी फूलों के आँचल पर
निकले टोलियों में सितारों की लगी जमघटें
पूछ रही हवाएँ छूकर पत्तों के रूखसारों को
क्यों खामोश हो लबों पे कैसी है सिलवटें
सोये झील के आँगन में लगा है दर्पण कोई
देख के मुखड़ा आसमां सँवारे बादल की लटें
चुपके से हटाकर ख्वाबों के अन्धेरे परदे
सुगबुगाने लगी नीदें गुनगुनाने लगी आहटे
#श्वेता🍁
स्याह आसमां के चेहरे से नज़रे ही न हटें
रात के परों पे उड़ती तितलियाँ जुगनू की
अलसाता चाँद बादलों में लेने लगा करवटें
फिसलती चाँदनी हँसी फूलों के आँचल पर
निकले टोलियों में सितारों की लगी जमघटें
पूछ रही हवाएँ छूकर पत्तों के रूखसारों को
क्यों खामोश हो लबों पे कैसी है सिलवटें
सोये झील के आँगन में लगा है दर्पण कोई
देख के मुखड़ा आसमां सँवारे बादल की लटें
चुपके से हटाकर ख्वाबों के अन्धेरे परदे
सुगबुगाने लगी नीदें गुनगुनाने लगी आहटे
#श्वेता🍁
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मैं से मोक्ष...बुद्ध
मैं नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता मेरा हृदयपरिवर...