कभी यूँ भी तो हो....
साँझ की मुँडेर पे चुपचाप
तेरे गीत गुनगुनाते हुए
बंद कर पलको की चिलमन को
एहसास की चादर ओढ़
तेरे ख्याल में खो जाये
हवा के झोंके से तन सिहरे
जुल्फें मेरी खुलकर बिखरे
तस्व्वुर में अक्स तेरा हो
और ख्यालों से निकल कर
सामने तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो.....
बरसती हो चाँदनी तन्हा रात में
हाथों में हाथ थामे बैठे हम
सारी रात चाँद के आँगन में
साँसों की गरमाहट से
सितारें पिघलकर टपके
फूलों की पंखुडियाँ जगमगाये
आँखों में खोये रहे हम
न होश रहे कुछ भी
और ख्वाब सारे उस पल में
सच हो जाए
कभी यूँ भी तो हो...
#श्वेता🍁
साँझ की मुँडेर पे चुपचाप
तेरे गीत गुनगुनाते हुए
बंद कर पलको की चिलमन को
एहसास की चादर ओढ़
तेरे ख्याल में खो जाये
हवा के झोंके से तन सिहरे
जुल्फें मेरी खुलकर बिखरे
तस्व्वुर में अक्स तेरा हो
और ख्यालों से निकल कर
सामने तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो.....
बरसती हो चाँदनी तन्हा रात में
हाथों में हाथ थामे बैठे हम
सारी रात चाँद के आँगन में
साँसों की गरमाहट से
सितारें पिघलकर टपके
फूलों की पंखुडियाँ जगमगाये
आँखों में खोये रहे हम
न होश रहे कुछ भी
और ख्वाब सारे उस पल में
सच हो जाए
कभी यूँ भी तो हो...
#श्वेता🍁
Amazing brother.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति आभार "एकलव्य"
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ध्रुव आपका।
Deletesuperb!!!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया संजय जी।
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