सुबह का चलकर शाम में ढलना
जीवन का हर दिन जिस्म बदलना
हसरतों की रेत पे दर्या उम्मीद की
खुशी की चाह में मिराज़ सा छलना
चुभते हो काँटें ही काँटे तो फिर भी
जारी है गुल पे तितली का मचलना
वक्त के हाथों से ज़िदगी फिसलती है
नामुमकिन इकपल भी उम्र का टलना
अंधेरे नहीं होते हमसफर ज़िदगी में
सफर के लिये तय सूरज का निकलना
#श्वेता🍁
जीवन का हर दिन जिस्म बदलना
हसरतों की रेत पे दर्या उम्मीद की
खुशी की चाह में मिराज़ सा छलना
चुभते हो काँटें ही काँटे तो फिर भी
जारी है गुल पे तितली का मचलना
वक्त के हाथों से ज़िदगी फिसलती है
नामुमकिन इकपल भी उम्र का टलना
अंधेरे नहीं होते हमसफर ज़िदगी में
सफर के लिये तय सूरज का निकलना
#श्वेता🍁
सफ़र सूरज की रौशनी ... दोनों हमसफ़र हैं ... पर कभी कभी रात आई है जो चली जाती है ... हर शेर लाजवाब है ...
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका नासवा जी,बहुत शुक्रिया आपका।।
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