स्याह रात की नीरवता सी
शांत झील मन में
तेरे ख्यालों के कंकर
हलचल मचाते है
एक एक कर गिरते
जल को तरंगित करते
लहरें धीरे धीरे तेज होती
किनारों को छूती है
भँवर बेचैनी की तड़प बन
खींचने लगते है
बेबस बेकाबू मन सम्मोहित
अनन्त में उतर जाता है
निचोड़कर प्राण फिर
छोड़ देता है सतह पर
निर्जीव देह जिसे सुध न रहती
बहता जाता है मानो
जीवन के प्रवाह में अंत की तलाश में
#श्वेता🍁
शांत झील मन में
तेरे ख्यालों के कंकर
हलचल मचाते है
एक एक कर गिरते
जल को तरंगित करते
लहरें धीरे धीरे तेज होती
किनारों को छूती है
भँवर बेचैनी की तड़प बन
खींचने लगते है
बेबस बेकाबू मन सम्मोहित
अनन्त में उतर जाता है
निचोड़कर प्राण फिर
छोड़ देता है सतह पर
निर्जीव देह जिसे सुध न रहती
बहता जाता है मानो
जीवन के प्रवाह में अंत की तलाश में
#श्वेता🍁
आदि और अन्त की अनवरत तालाश, इक अबूझ सी पहेली समझ जूझते हैं हम। आदि अंत को ढूंढ़ता है और अन्त फिर आदि के लिए अस्त होता है। कहूं तो अंतहीन यात्रा है यह। कौन था, कौन है और कौन रहेगा किसने देखा ? क्या वो कहेंगे जो सघन वन में मौन हो , पालथी भर कर भृकुटी में आसमान खोजते हैं ! या वो ऊंचा, बहुत ऊंचा शून्य को परिभाषित करने की निर्रथक कोशिश में जुटा देव-दरख्त। मै भी चाहता हूं कि इक प्रयत्न मैं भी करूँ उस की जड़ों में मौन हो, जा विराजू और मौन को ओढ़ मिट्टी हो जाऊं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचार आपके।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आभार आपका।
इस कविता मे आप ने दिल के भाव जाहिर किये हे सुंदर कविता के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteजी आपका धन्यवाद आपने भाव समझा कविता के रचनाकार का प्रयास सफल हुआ।
Deleteबहुत आभार धन्यवाद शुक्रिया आपका।