मैं ढलती शाम की तरह
तू तनहा चाँद बन के
मुझमे बिखरने आ जा
बहुत उदास है डूबती
साँझ की गुलाबी किरणें
तू खिलखिलाती चाँदनी बन
मुझे आगोश मे भरने आजा
दिनभर की मुरझायी कली
कोर अब भींगने लगे
भर रातरानी की महक
हवा बनके लिपटने आजा
परों को समेट घर लौटे
परिदें भी अब मौन हुए
तू साँझ का दीप बन जा
मन मे मेरे जलने आ जा
सारा दिन टटोलती रही
सूने अपने दरवाजे को
कोई संदेशा भेज न
तू आँखों मे ठहरने आजा
बेजान से फिरते है
बस तेरे ख्याल लिए
एहसास से छू ले फिर से
धड़कनों मे महकने आजा
#श्वेता🍁
तू तनहा चाँद बन के
मुझमे बिखरने आ जा
बहुत उदास है डूबती
साँझ की गुलाबी किरणें
तू खिलखिलाती चाँदनी बन
मुझे आगोश मे भरने आजा
दिनभर की मुरझायी कली
कोर अब भींगने लगे
भर रातरानी की महक
हवा बनके लिपटने आजा
परों को समेट घर लौटे
परिदें भी अब मौन हुए
तू साँझ का दीप बन जा
मन मे मेरे जलने आ जा
सारा दिन टटोलती रही
सूने अपने दरवाजे को
कोई संदेशा भेज न
तू आँखों मे ठहरने आजा
बेजान से फिरते है
बस तेरे ख्याल लिए
एहसास से छू ले फिर से
धड़कनों मे महकने आजा
#श्वेता🍁
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 18 जून 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 18 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आभार आपका दी।
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी आभार आपका।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
बहुत आभार शुक्रिया सुधा जी।
Deleteमिलन की प्यास तृप्त हो सके तो मन ऐसी कल्पनाऐं करता है और ह्रदय को गुदगुदाता है तब मोहक शब्दों की कड़ियाँ "एक बार फिर " के रूप में उभरती हैं हमें ऊँचे आसमान में उड़ान भरने के लिए। श्वेता जी के बिषय वही हैं जो हम सबके जीवन से टकराते हैं लेकिन शब्दों का चयन और उनमें भाव -गाम्भीर्य की चाशनी भर देना इनके सृजन का अनूठापन है। मैं ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ ताकि पाठक ह्रदय को स्पर्श करती रचनाओं का वाचन कर अपने अंतःकरण को सुकून भी पहुँचायें। बधाई श्वेता जी। धन्यवाद यशोदा जी ऐसी माधुर्य और लाळिल्य से परिपूर्ण रचना पेश करने के लिए।
ReplyDeleteरवींद्र जी रचनाओं की विवेचनात्मक व्याख्या में आपका जवाब नहीं अतुलनीय प्रतिक्रिया होती है आपकी।आपकी मनमोहक टिप्पणी के लिए सदैव आभार शुक्रिया आपका रवींद्र जी।
Deleteमिलन की प्यास तृप्त हो सके तो मन ऐसी कल्पनाऐं करता है और ह्रदय को गुदगुदाता है तब मोहक शब्दों की कड़ियाँ "एक बार फिर " के रूप में उभरती हैं हमें ऊँचे आसमान में उड़ान भरने के लिए। श्वेता जी के बिषय वही हैं जो हम सबके जीवन से टकराते हैं लेकिन शब्दों का चयन और उनमें भाव -गाम्भीर्य की चाशनी भर देना इनके सृजन का अनूठापन है। मैं ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ ताकि पाठक ह्रदय को स्पर्श करती रचनाओं का वाचन कर अपने अंतःकरण को सुकून भी पहुँचायें। बधाई श्वेता जी। धन्यवाद यशोदा जी ऐसी माधुर्य और लाळिल्य से परिपूर्ण रचना पेश करने के लिए।
ReplyDeleteप्रेम की पींगें और मिलन का एहसास बहुत कुछ कल्पनाओं को सक्रीय कर जाता है ... फिर यही कल्पनाएँ सुन्दर शब्दों को जन्म दे देती हैं ...
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका नासवा जी।
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