Saturday 30 September 2017

रावण दहन


हर बर्ष मन की बुराइयों को मिटाकर
श्री राम के आदर्शों पर
चलने का संकल्प करते है
पुतले के संग रावण की,
हृदय की बुराइयों को जलाकर
रावण को मिटाने का प्रण करते है
स्वयं को बस भरमाते है।
स्वयं के अंतर्मन में झाँक कर
कभी देख पाए तो देखिएगा
राम का चरित्र की छाया से दूर है
रावण से भी निचले स्तर पर
आज मानव का मूल्य पाते है।
हम राक्षस और दुष्ट 
रावण के चरित्र का 
शतांश भी स्वयं में पाते हैं??
रावण के अहंकार पर हँसते हम
अपनी तिनके सी उपलब्धि पर
गर्व से उन्मत हो जाते है,
रावण की वासना को
उसके विनाश का कारण कहते हुए
उसके संयम को भूल जाते है
माता सीता के तपबल में
रावण की मर्यादा को अनदेखा कर
हम स्वयं के मन के असुर को
जीवित कर जाते है
मनुष्य  कितने चरित्रवान है आज
हर दूसरे दिन गली, मुहल्लों में
अखबार की सुर्खियों में छपे नज़र आते है
अपनी ओछी चरित्र का
प्रमाण हम स्वयं ही दे जाते है
रावण अपने दस चेहरे बाहर ही रखता था
आज हम अपना एक चेहरा ही
अनगिनत में मुखौटों की तह में
छुपाते है
अपने अंदर छुपे
रावण के दस चेहरों में
एक चेहरा ही काश कि हम मिटा पाये
चलिए न आज हम 
बुराई प्रतीक रूपी पुतले के साथ
अपने अंतर्मन की एक बुराई जलाकर
रावण दहन का असली मतलब समझे।

   #श्वेता🍁

3 comments:

  1. विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाऐं।
    वर्तमान सन्दर्भों में सामाजिक सरोकारों और परिवेश की चुनौतियों के समक्ष हमारा आत्मसमर्पण रावण से कुछ सीखने को कहता है।
    असत्य पर सत्य की विजय का पर्व समय के साथ ढोयी जा रही परम्परा बन कर रह गया है।
    ललकार भी ज़रूरी है सोये हुए समाज को जगाने के लिए।
    बधाई।

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  2. रावण अपने दसों चेहरे बाहर रखता था हम अपना एक चेहरा ही अनगिनत मुखौटों की तह में छुपाते हैं.....
    बहुत ही सटीक....
    लाजवाब....
    वाह!!

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  3. बहुत‎ सही और खरी बातें कही हैं आपने रचना के माध्यम‎ से ..., अत्यन्त सुन्दर‎ रचना‎ श्वेता जी .

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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