नयन बसे घनश्याम,
मैं कैसे देखूँ जग संसार।
पलकें झुकाये सबसे छुपाये,
बैठी घूँघटा डार।
मुख की लाली देखे न कोई,
छाये लाज अपार।
चुनरी सरकी मैं भी उलझी,
लट में उंगली डार।
कंगन चुड़ी गिन-गिन हारी,
बैरी रैन की मार।
जियरा डोले श्याम ही बोले,
हार विरह की रार।
सखिया छेड़े जिया जलाये,
लेके नाम तुम्हार।
न बूझै क्यों तू निर्मोही,
देखे न अँसुअन धार।
मन से बँध गयी नेह की डोरी,
तोसे प्रीत अपार।
मेरे मोह बंध जाओ न,
मैं समझाऊँ प्रेम का सार।
कुछ न चाहूँ हे,मुरलीधर,
कुछ पल साथ अपार।
करने को सर्वस्व समर्पण,
ले द्वार खड़ी उर हार।
श्यामल शब्दों के उलझे अलकों को प्रिय की प्रतीक्षा में आतुर अपलक पलकों पर सजाये अनुराग की भंगिमा के परिधान में संवरी भाव विह्वल काव्य नायिका के अंतस के उछाह का अलौकिक उच्छ्वास!!!
ReplyDeleteअति आभार आपका विश्वमोहन जी,आपकी सराहना भरे शब्द साधारण रचना को जीवंत कर देते है।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteवाह !
ReplyDeleteअति उत्तम !
श्रृंगार रस का माधुर्य बिखेरती,बरसाती मनमोहक रचना।
भावप्रवण अभिव्यक्ति।
बधाई एवं शुभकामनाऐं।
बहुत बहुत बहुत आभार आपका रवींद्र जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।आपकी शुभकामनाएँ सदैव अपेक्षित है।
Deleteमनभावन प्रस्तुति....
ReplyDeleteवाह!!!
👌👌
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteबहुत खूब , अति सुन्दर .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।
Deleteश्याम रंग में पगी मनभावन कविता.बहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका राजीव जी।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 22 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअति आभार आपका आदरणीय सर रचना को मान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सर।
Deleteभावप्रवण अभिव्यक्ति...... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका नीतू जी।ब्लॉग पर स्वागत है आपका।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteअति आभार आपका ओंकार जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteजियरा डोले श्याम ही बोले,
ReplyDeleteआए न चैन करार।
सखिया छेड़े जिया जलाये,
लेके नाम तुम्हार।
बहुत सुंदर रचना। छंदों से सजी ठुमरी जैसी गायन योग्य मोहक रचना।
अति आभार आपका अमित जी,तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।आपकी सराहना सदैव आनंदित करती है।
Deleteबहुत ही सराहनीय
ReplyDeleteअति आभार आपका ध्रुव जी।
Deleteमनमोहक अनुपम रचना !
ReplyDeleteया अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोय ।
ज्यौं ज्यौं बूडै स्याम रंग, त्यों त्यों उज्जवल होय ।।
बहुत बहुत आभार तहेदिल से.शुक्रिया आपका खूब सारा मीना जी।
Deleteआपकी सुंदर पंक्तियाँ अनायास ही मुस्कान ले आयी।सदा स्नेह बनाये रखे।
कान्हा के प्रेम में रची बसी लाजवाब रचना ... प्रार्थना का भाव लिए ...
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