Monday, 3 June 2019

सावित्री


वैज्ञानिक विश्लेषण में
सारहीन,अटपटा ... फिर भी ..
कच्चे धागे लपेटकर
बरगद की फेरी
नाक से माँग तक 
टीका गया पीपा सिंदूर,
आँचल के कोर को
मेंहदी लगी हथेलियों में रखकर
हाथों को जोड़कर श्रद्धापूर्वक
सावित्री की तरह
अपने सत्यवान के लिए
माँगी गयी मनौती
सत्यवान और सावित्री के 
अमर, अटल शाश्वत प्रेम की 
 कहानी तर्कों से
 काल्पनिक और
आधारहीन भले माना गया हो
पर देखियेगा पढ़कर कभी
एक भारतीय नारी के
 संस्कार और मर्यादा के 
 बंधनों के ऊपर तैरता "मन"
सघन बरगद की 
मजबूत शाखाओं-सा
गूँथकर हृदय के 
स्नेहिल स्पंदन 
प्रेम के विस्तृत आकाश को 
मौन सहेजता 
असंख्य अनगिनत
आच्छादित पत्तियों-सा
अपने रोम-रोम में
जीती महसूस करती है 
अपने मन के मीत के
साथ हर क्षण को
और बरगद के तन पर लपेटकर
भावनाओं के कच्चे सूत
वो चाहती है  
पाताल नापती जड़ जैसी
गहरा शाश्वत प्रेम... 
जीवनभर का अटूट साथ 
अजर, अमर, अटल ...
जैसे सावित्री और सत्यवान।

#श्वेता सिन्हा

12 comments:

  1. ये हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। बहुत अच्छा लिखा

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    1. आभारी हूँ लोकेश जी,त्वरित प्रतिक्रिया के लिए सादर शुक्रिया।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 03/06/2019 की बुलेटिन, " इस मौसम में रखें बच्चो का ख़ास ख़्याल - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. एक भारतीय नारी के
    संस्कार और मर्यादा के
    बंधनों के ऊपर तैरता "मन"
    सघन बरगद की
    मजबूत शाखाओं-सा
    गूँथकर हृदय के
    स्नेहिल स्पंदन ...
    बेहतरीन और बस बेहतरीन..... बहुत प्यारी रचना सहेज कर रखने जैसी...,


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  4. प्रिय श्वेता ! क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम बरगद की पूजा इसलिए करें क्योंकि वह बहुत ज्यादा ऑक्सीजन, छाया, शीतलता देता है।
    रचना की ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं।
    "और बरगद के तन पर लपेटकर
    भावनाओं के कच्चे सूत
    वो चाहती है
    पाताल नापती जड़ जैसी
    गहरा शाश्वत प्रेम..."

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  5. भारतीय जीवन शैली में लोक जीवन की अनेक विविधताएँ,परम्पराएँ आज भी आकर्षण बनी हुईं हैं। इनमें निहित सकारात्मकता जीवन में रंग बिखेरती है,मन को सुकून देती है। उत्सव सामाजिक जीवन को ऊर्जावान रखते हैं।

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    1. पर हमने एक तरफ कंडे के कलम से कंप्यूटर तक की सफ़र तय कर ली है तो हमें कुछ अंधपरम्परा की भी अवहेलना करनी चाहिए। सिर्फ आकर्षण मात्र के लिए सच्चाई से समझौता नहीं करना चाहिये शायद ... मेरा ऐसा मानना भर है (छोटी मुँह , बड़ी बात कह दी शायद ...)

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  6. बड़ी बेबाकी से कही गई कई भारतीय समाज की मौन महिलाओं की मन की बात ... सराहनीय और विचारणीय भी ....

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  7. बहुत सुंदर भारतीय नारी का शाश्वत स्वरूप और आस्था का बहुत सुंदर शाब्दिक चित्र अंतर की गहराई तक उतरता।
    वाह श्वेता अप्रतिम।

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  8. आस्था, विश्वास और प्रेम का नाम ही सावित्री हैं स्वेता जी ,जिनके अंदर ये भावनाये जीवित हैं वो नारी तो सावित्री ही हैं। बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना

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  9. कई परम्पराएं चाहे तर्क पर खरी नहीं उतरतीं पर भावनाओं के दरिया में उनका महत्त्व कम नहीं है ... आपकी दृष्टि को नमन है ...

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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