वैज्ञानिक विश्लेषण में
सारहीन,अटपटा ... फिर भी ..
कच्चे धागे लपेटकर
बरगद की फेरी
नाक से माँग तक
टीका गया पीपा सिंदूर,
आँचल के कोर को
मेंहदी लगी हथेलियों में रखकर
हाथों को जोड़कर श्रद्धापूर्वक
सावित्री की तरह
अपने सत्यवान के लिए
माँगी गयी मनौती
सत्यवान और सावित्री के
अमर, अटल शाश्वत प्रेम की
कहानी तर्कों से
काल्पनिक और
काल्पनिक और
आधारहीन भले माना गया हो
पर देखियेगा पढ़कर कभी
एक भारतीय नारी के
संस्कार और मर्यादा के
बंधनों के ऊपर तैरता "मन"
सघन बरगद की
मजबूत शाखाओं-सा
गूँथकर हृदय के
स्नेहिल स्पंदन
प्रेम के विस्तृत आकाश को
मौन सहेजता
असंख्य अनगिनत
आच्छादित पत्तियों-सा
अपने रोम-रोम में
जीती महसूस करती है
अपने मन के मीत के
साथ हर क्षण को
और बरगद के तन पर लपेटकर
भावनाओं के कच्चे सूत
वो चाहती है
पाताल नापती जड़ जैसी
गहरा शाश्वत प्रेम...
जीवनभर का अटूट साथ
अजर, अमर, अटल ...
जैसे सावित्री और सत्यवान।
#श्वेता सिन्हा
ये हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। बहुत अच्छा लिखा
ReplyDeleteआभारी हूँ लोकेश जी,त्वरित प्रतिक्रिया के लिए सादर शुक्रिया।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 03/06/2019 की बुलेटिन, " इस मौसम में रखें बच्चो का ख़ास ख़्याल - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteएक भारतीय नारी के
ReplyDeleteसंस्कार और मर्यादा के
बंधनों के ऊपर तैरता "मन"
सघन बरगद की
मजबूत शाखाओं-सा
गूँथकर हृदय के
स्नेहिल स्पंदन ...
बेहतरीन और बस बेहतरीन..... बहुत प्यारी रचना सहेज कर रखने जैसी...,
प्रिय श्वेता ! क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम बरगद की पूजा इसलिए करें क्योंकि वह बहुत ज्यादा ऑक्सीजन, छाया, शीतलता देता है।
ReplyDeleteरचना की ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं।
"और बरगद के तन पर लपेटकर
भावनाओं के कच्चे सूत
वो चाहती है
पाताल नापती जड़ जैसी
गहरा शाश्वत प्रेम..."
भारतीय जीवन शैली में लोक जीवन की अनेक विविधताएँ,परम्पराएँ आज भी आकर्षण बनी हुईं हैं। इनमें निहित सकारात्मकता जीवन में रंग बिखेरती है,मन को सुकून देती है। उत्सव सामाजिक जीवन को ऊर्जावान रखते हैं।
ReplyDeleteपर हमने एक तरफ कंडे के कलम से कंप्यूटर तक की सफ़र तय कर ली है तो हमें कुछ अंधपरम्परा की भी अवहेलना करनी चाहिए। सिर्फ आकर्षण मात्र के लिए सच्चाई से समझौता नहीं करना चाहिये शायद ... मेरा ऐसा मानना भर है (छोटी मुँह , बड़ी बात कह दी शायद ...)
Deleteबड़ी बेबाकी से कही गई कई भारतीय समाज की मौन महिलाओं की मन की बात ... सराहनीय और विचारणीय भी ....
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर भारतीय नारी का शाश्वत स्वरूप और आस्था का बहुत सुंदर शाब्दिक चित्र अंतर की गहराई तक उतरता।
ReplyDeleteवाह श्वेता अप्रतिम।
आस्था, विश्वास और प्रेम का नाम ही सावित्री हैं स्वेता जी ,जिनके अंदर ये भावनाये जीवित हैं वो नारी तो सावित्री ही हैं। बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteकई परम्पराएं चाहे तर्क पर खरी नहीं उतरतीं पर भावनाओं के दरिया में उनका महत्त्व कम नहीं है ... आपकी दृष्टि को नमन है ...
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