Saturday 31 October 2020

सोचती हूँ...

 
२७ जून २०१८ को आकाशवाणी जमशेदपुर के कार्यक्रम सुवर्ण रेखा में पहली बार  एकल काव्य पाठ प्रसारित की गयी थी। जिसकी रिकार्डिंग २२ जून २०१८ को की गयी थी।
 बहुत रोमांचक और सुखद अवसर था। अति उत्साहित महसूस कर रही थी,
मानो कुछ बहुमूल्य प्राप्त हो गया हो
उसी कार्यक्रम में मेरे द्वारा पढ़ी गयी
 एक कविता 
--–///----

सोचती हूँ..
----
बित्तेभर विचारों का पुलिंदा और 
एक पुलकती क़लम लेकर
सोचने लगी थी
लिखकर पन्नों पर 
क्रांति ला सकती हूँ युगान्तकारी
पलट सकती हूँ
मनुष्य के मन के भाव
प्रकृति को प्रेमी-सा आलिंगन कर
जगा सकती हूँ 
बोझिल हवा,
सिसकते फूल,
घायल वन,
दुहाते पहाड़ों और
रोती नदियों के प्रति संवेदना
पर,
सहृदयताओं की कविताएँ लिखने पर भी तो
न मिटा सकी मैं
निर्धन की भूख
अशिक्षा का अंधकार
मनुष्य की पाश्विकता
मन की अज्ञानता
ईष्या-द्वेष,लोलुपता
नारियों का अभिशाप
हाँ शायद...
कविताओं को पढ़ने से
परिवर्तित नहीं होता अंतर्मन 
विचारों का अभेद्य कवच
कुछ पल शब्दों के 
ओज से प्रकाशित होती है
विचारों की दीप्ति
चंद्रमा की तरह
सूर्य की उधार ली गयी रोशनी-सी
फिर आहिस्ता-आहिस्ता 
घटकर लुप्त हो जाती है
अमावस की तरह

सोचती हूँ...
श्वेत पन्नों को काले रंगना छोड़
फेंक कर कलम थामनी होगी मशाल
जलानी होगी आस की आग 
जिसके प्रकाश में
मिटा सकूँ नाउम्मीदी और
कुरीतियों के अंधकार
काट सकूँ बेड़ियाँ 
साम्प्रदायिकता की साँकल में
जकड़ी असहाय समाज की
लौटा पाऊँ मुस्कान
रोते-बिलखते बचपन को
काश!मैं ला पाऊँ सूरज को 
खींचकर आसमां से
और भर सकूँ मुट्ठीभर उजाला
धरा के किसी स्याह कोने में।

--श्वेता सिन्हा

13 comments:

  1. जिसके प्रकाश में
    मिटा सकूँ नाउम्मीदी और
    कुरीतियों के अंधकार
    काट सकूँ बेड़ियाँ
    साम्प्रदायिकता की साँकल में
    जकड़ी असहाय समाज की
    लौटा पाऊँ मुस्कान
    रोते-बिलखते बचपन को
    काश!मैं ला पाऊँ सूरज को
    खींचकर आसमां से
    और भर सकूँ मुट्ठीभर उजाला
    धरा के किसी स्याह कोने में।

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत बहुत सुंदर रचना। मैं बता नही सकती कितनी खुश हूँ आज आपको अपने ब्लॉग पर वापस देख कर। आनंद आ गया।
    आपके यह विचार, सदा की तरह अंतरात्मा को झकझोरते और अंतर्मन की आंखे खोलते हैं और फिर भी यह कविता सब से अधिक हंट कर है और बहुत सुंदर है।
    सच है, एक कवि भले अपनी कलम से नये विचार प्रस्तुत कर और लोगों को झकझोरे पर लोग अपनी अंतरात्मा के द्वार बंद करने में बड़े तेज़ होते हैं। समाज एक कवि की लेखनी से प्रेरित हो कर उस दिशा में विचार करने को प्रेरित तो होता है पर उतनी ही जल्दी अपने आप को पुनः समझा बुझा कर अपने आप को पुराने विचारों में जकड़ लेता है।

    आपकी यह रचना बिल्कुल आपके समान है, सुंदर, ओजपूर्ण, जागरूक और बहुत अच्छी और सत्यता से भरी हुई।

    ReplyDelete
  3. अब आप कहीं मत जाईयेगा, यहीं रहिएगा अपने ब्लॉग पर। सुंदर रचना के लिये आभार व आपको प्रणाम।

    ReplyDelete
  4. सुस्वागतम प्रिय श्वेता. अभिनंदनम!!!
    सबसे पहले मेरी बात का मान बढ़ाने के लिए बहुत बहुत आभार! इतने दिनों बाद अपने वैचारिक सदन में तुम्हारी वापसी से बहुत ही अच्छा लग रहा है! यूँ तो ब्लॉग जगत अपनी चाल से चल रहा है, पर हरेक की अपनी जगह है! तुम्हारे ब्लॉग पर फैला सन्नाटा बहुत बुरा लग रहा था. तुम्हारी वापसी से संतोष हुआ कि तुम्हारी रचनात्मक शक्ति ने तुम्हें फिर से सक्रिय होने की प्रेरणा दी!

    ReplyDelete
  5. प्रिय श्वेता, एक संवेदनशील कवि की गहन चिंता और चिंतन इस प्रभावी में नज़र आते हैं! कवि कोई बहुत बड़ी क्रांति करने में सक्षम नहीं होता. हालांकि देश की आज़ादी में कलम ने तलवार से बढ़कर काम किया था.उस समय के कवियों की रचनाओं ने जन मानस में देश भक्ति के ज़्ज़बे को जगाकर आज़ादी के प्रति लगन जगाई थी. ये भी सच है कि सोशल मीडिया के कारण विचारों का प्रवाह कहीं खो सा गया है.. कवियों की कविताएँ अप्रभावी सी हो गयी हैं!, पर फिर भी कवि हमेशा एक उमीद से भरा होता है, हाँ जीवन की विद्रुपताओं के बीच में उसका मन आशंकाओं से भर जाता है. विचारों के भंवर में उलझते मन की सुंदर अभिव्यक्ति के लिए तुम्हें बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं. AIR
    पर प्रसारित होने से इस रचना का महत्व और बढ़ गया है! सचमुच पहली_ उपलब्धि सदैव खास होती है! हार्दिक स्नेह के साथ अगली रचना की प्रतीक्षा में.

    ReplyDelete
  6. कृपया प्रभावी रचना पढ़ें

    ReplyDelete
  7. आपकी वापसी से बहुत खुशी हुई श्वेता जी! मैं तो इस बीच कई बार यहाँ आयी कि हो सकता है मेरी रीडिंंग लिस्ट में आप दिखाई न दे रहे हों...।न आने का जो भी कारण हो आशा है अब सब ठीक होगा और हमें आपकी रचनाओं का रसास्वादन निरन्तर मिल पायेगा।
    आकाशवाणी में आपकी रचना को आपसे ही सुना जाना वास्तव में बहुत बड़ी उपलब्धि है...बहुत बहुत बधाई आपको....।
    समसामयिक हालातों सेऐसा हीलग रहा है की समाज से संवेदना जैसे बिल्कुल खत्म हो गयी कविता या कोई भी विचार किसी के जेहन में घुस ही नहीं रहे तो स्वाभाविक है कि कवि कलम छोड़ यथा सम्भव प्रयास करना चाहेगा जिससे समाज का उत्थान हो...
    सोचती हूँ...
    श्वेत पन्नों को काले रंगना छोड़
    फेंक कर कलम थामनी होगी मशाल
    जलानी होगी आस की आग
    जिसके प्रकाश में
    मिटा सकूँ नाउम्मीदी और
    कुरीतियों के अंधकार
    बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब सृजन

    ReplyDelete
  8. बधाई एवं शुभकामनाएँ श्वेता दी।

    ReplyDelete
  9. श्वेता दी, मैं कई दिनों से आपको नदारद पा कर सोचती थी कि न जाने क्या हुआ। आज आपकी रचना और वो भी आकाशवाणी पर पहली कविता देख कर बहुत ख़ुशी हुई। पहली सफलता की खुशी कुछ अलग सी होती है। बहुत बहुत बधाई। आप इसी तरह आगे बढ़ती रहे यही शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  10. पुनः स्वागत आदरणीया श्वेता जी।

    ReplyDelete
  11. स्वागत सरस्वती-सुता!!

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...