फिर हो गया है हसींं इक सवेरा
बुझ गया चंदा बुझ गये दीपक
रात तक रुक गया ख़्वाबों का फेरा
मोड़कर सिरहाने लिहाफोंं के नीचे
छुप गया साँझ तक तन्हाई का लुटेरा
पोटली उम्मीद की बाँध चले घर से
लेकर के लौटेगे खुशियों कटोरा
यही ज़िंंदगानी है दो चार दिन की
कुछ टूटते नये बनते सपनों का बसेरा।
#श्वेता