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Tuesday 16 April 2019

गर्मी के दिन


राग-रंग बदला मौसम का
बदले धूप के तेवर
रुई धुन-धुन आसमान के
उड़ गये सभी कलेवर

सूरज की पलकें खुलते ही
लाजवंती बने पेड़ विशाल
कोयल कूके भोर-साँझ को
ताप घाम से रक्तिम गाल

पीत वसन पहने मुस्काये
झुमके झूमर अमलतास
चंदन-सी शीतल लगती
गुलमोहर की मीठी हास

टप-टप चुये अँचरा भींजे
अकुलाये दुपहरी न बीते
धूप-छाँव के खेल से व्याकुल
कुम्हलाई-सी कलियाँ खीझे

कंठ सूखते कूप,ताल के 
क्षीण हुई सरिता की धारा
लहर-लहर मरुआये रोये
निष्ठुर तपन है कितना सारा

साँझ ढले सिर से अवनि के
सूरज उतरा तपन मिटाने  
छुप गया सागर की लहरों में
ओढ़ चाँदनी नींद बहाने

फूल खिले नभ पर तारों के
महकी बेला अंजुरी जोड़े
सारी  रात चंदा बतियाये
नींद की परियाँ पाँखें खोले

नीम निबौरी चिडिया बोली
साँस ऋतु की पल-पल गिन
चार दिवस फुर्र से उड़ जाये
चक्ख अमिया-सी गर्मी के दिन।

#श्वेता सिन्हा

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मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...