उजालों की खातिर,अंधेरों से गुज़रना होगा
उदास हैं पन्ने,रंग मुस्कुराहटोंं का भरना होगा
यादों से जा टकराते हैंं इस उम्मीद से
पत्थरों के सीने में मीठा कोई झरना होगा
उफ़नते समुंदर के शोर से कब तक डरोगे
चाहिये सच्चे मोती तो लहरों में उतरना होगा
हर सिम्त आईना शहर में लगाया जाये
अक्स-दर-अक्स सच को उभरना होगा
मुखौटों के चलन में एक से हुये चेहरे
बग़ावत में कोई हड़ताल न धरना होगा
सियासी बिसात पर काले-सादे मोहरे हम
वक़्त की चाल पर बे-मौत भी मरना होगा
©श्वेता सिन्हा