सोचती हूँ अक्सर
तुम गुजरो कभी
मुझमें होकर
छूकर एहसास मेरे
कभी देखो नज़रभर
कभी चुन लो मुझे
मोतियों की तरह
उठा लो अंजुरी भर
फिर बैठकर
किसी चाँदनी रात की
सपनीली मुंड़ेर पर
प्रेम की डोरी में
टिमटिमाते सितारो की
नन्हें ख्वाहिशों को
गूँथ लो मुझे
और पहन लो
अपने साँसों में
अटूट माला की तरह
तुम्हारी धड़कन बन
लिपटी रहूँ वजूद से
कभी न जुदा होने को
#श्वेता🍁
तुम गुजरो कभी
मुझमें होकर
छूकर एहसास मेरे
कभी देखो नज़रभर
कभी चुन लो मुझे
मोतियों की तरह
उठा लो अंजुरी भर
फिर बैठकर
किसी चाँदनी रात की
सपनीली मुंड़ेर पर
प्रेम की डोरी में
टिमटिमाते सितारो की
नन्हें ख्वाहिशों को
गूँथ लो मुझे
और पहन लो
अपने साँसों में
अटूट माला की तरह
तुम्हारी धड़कन बन
लिपटी रहूँ वजूद से
कभी न जुदा होने को
#श्वेता🍁
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ।।।।।
ReplyDeleteछूकर एहसास मेरे
ReplyDeleteकभी देखो नज़रभर
कभी चुन लो मुझे
मोतियों की तरह
उठा लो अंजुरी भर
फिर बैठकर
किसी चाँदनी रात की
सपनीली मुंड़ेर पर
प्रेम की डोरी में
टिमटिमाते सितारो की
नन्हें ख्वाहिशों को
गूँथ लो मुझे
और पहन लो
निशब्द कर दिया इस कविता ने तो बस वाह शब्द भी बहुत छोटा लग रहा हैं। खुदा ये शब्दों की माला बनाये रखे
आपकी लिखी रचना सोमवार 19 सितम्बर ,2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सोचा, गुजरूँ तुमसे होकर,
ReplyDeleteऔर देखो तुम नजर भर।
गुजर न पाया, रह गया वहीं,
मोती बनकर।
अद्भुत अहसास।
बहुत सुन्दर मोती के समान.., अति सुन्दर ।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteचाँदनी रात की सपनीली मुंडेर
अप्रतिम एवं लाजवाब।
अनुरागरत हृदय की लौकिक और आलौकिक कामनाओं की सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय श्वेता।प्रेम की अटूट डोर में गूंथे ये भाव अनमोल हैं।
ReplyDeleteटिमटिमाते सितारो की
ReplyDeleteनन्हें ख्वाहिशों को
गूँथ लो मुझे
और पहन लो
अपने साँसों में
अटूट माला की तरह
तुम्हारी धड़कन बन
लिपटी रहूँ वजूद से
कभी न जुदा होने को..
..मन के भावों और एहसासों को व्यक्त करता बहुत सुंदर और उतना ही अनूठा लेखन ।