Tuesday 9 May 2017

तितलियाँ

रंगीन ख्वाबों सी आँख में भरी तितलियाँ
ओस की बूँदों सी पत्तों पे ठहरी तितलियाँ

गुनगुनाने लगा दिल बन गया चमन कोई
गुल  के पराग लबों पे बिखरी तितलियाँ

बादलों के शजर में रंग भरने को आतुर
इन्द्रधनुष के शाखों पे मखमली तितलियाँ

बचपना दिल का लौट आता है उस पल
हौले से छूये गुलाबों की कली तितलियाँ

उदास मन के अंधेरों में उजाला है भरती
दिल की मासूम कहानी की परी तितलियाँ

मन के आसमाँ पर बेरोक फिरती रहती
आवारा है ख्यालों की मनचली तितलियाँ

         #श्वेता🍁


10 comments:

  1. दिल में उतर जाने वाली प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभार शुक्रिया संजय जी😊😊

      Delete
  2. सुन्दर अभिव्यक्ति ! श्वेता आपकी लिखी रचना जीवंत करती हैं हृदय को, आभार। "एकलव्य"

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार ध्रुव जी आप मान देते हो मेरा सौभाग्य है।

      Delete
  3. आक्रोश ,क्रांति ,जीवन की विसंगतियां ,समाज , राजनीति ,शोषण ,रिश्ते आदि बिषयों से परे मन जब प्रकृति को ज़्यादा याद करने लगे तो श्वेता जी की रचनाएँ पढ़ने से ख़ुशी मिलेगी। सुकोमल भावों का प्रस्फुटन हमेशा अंतःकरण की गहराई नापता है। बधाई श्वेता जी इस विशेष अंक में आपकी रचना के चयन पर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी रवींद्र जी आपने बहुत सुंदर शब्दों में मेरी रचनाओं की सराहना की...बहुत बहुत आभारी है आपके ।आपकी शुभकामनाओं के लिए हृदय से शुक्रिया आपका।।

      Delete
  4. Replies
    1. बहुत बहुत आभार सुशील जी आपका।


      Delete
  5. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति....

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आदरणीय कैलाश जी।

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...